"बया ने बन्दर से कहा 'ऐ भाई, तुम क्यों इस घोर वर्षा में कष्ट उठा रहे हो? तुमने शायद मेहनत करके अपना घोंसला नहीं बनाया। इसी कारण तुमको इतना कष्ट हो रहा है। देखो, हमने कितना सुन्दर घोंसला बना लिया है। इसी से हम इस बरसात और जाड़े में भी सुखी हैं। तुम भी अगर आलस त्याग कर अपना घर बना डालो तो तुम्हें इस भयंकर ऋतु का कष्ट न झेलना पड़े। ऐ भाई, साहस और पुरुषार्थ से काम लो।' बन्दर को न जाने क्या सूझा कि वह दाँत निकालकर घोंसले पर झपटा। उसने बया के अंडे तोड़ डाले। उसका घोंसला उजाड़ दिया।
बया घबराहट में कुछ और न करके चीखने लगा। उसका घोंसला उजड़ गया और वह अपनी पत्नी के साथ दुखी होकर उजड़े हुए घोंसले पर शोक प्रकट करता रहा। सच है, नीच को कभी अच्छी सलाह नहीं देनी चाहिए।" (जहालत के पचास साल- श्रीलाल शुक्ल)
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