मनुष्य, सिर्फ सोचता है अपने बारे में
और
उनके बारे में भी जो उसके अपने हैं
जो
उसके परिवार हैं या जो उसके पालतू हैं
वह
फ़िक्र करता है उन्हीं की भूख-प्यास
दुःख-तकलीफ
और स्वास्थ्य के बारे में
जिन्हें
वह अपनी जिम्मेदारी समझता है
बाकी
सब जीवों को वह
भगवन
के भरोसे छोड़ देता है
यह
सोचकर कि इन सबकी चिंता करना तो
भगवान
की जिम्मेदारी है न!
मगर
कमाल तो यह है कि
इतना
सोचने के बाद भी वह
भगवान
बनना चाहता है.....
(कृष्णधर शर्मा 9.9.2021)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें