'सम्राट!' भगवान तिष्य ने कहा - आपकी धर्म में अभिरुचि हुई, यह बहुत शुभ हुआ। भगवान बुद्ध ने भी इसी प्रकार अकस्मात ज्ञान प्राप्त किया था। शक्ति और अधिकार द्वारा अधीनों को वश करने की अपेक्षा प्रेम और दया से प्राणि-मात्र को जीतना श्रेयस्कर है। शरीर को अधीन करने की अपेक्षा आत्मा को वशीभूत कर लेना सच्ची विजय है। (बाहर-भीतर - आचार्य चतुरसेन)
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