नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शनिवार, 12 नवंबर 2022

उन्होंने जीतना ही कब चाहा था मुझे

 

उन्होंने जीतना ही कब चाहा था मुझे

मैं तो ज़माने से बैठा था हारने के लिए

                     कृष्णधर शर्मा 12.11.22

सोमवार, 7 नवंबर 2022

आधुनिक मीराबाई- उमा सिंह

 एक बात तो तय है कि ईमानदारी का रास्ता होता कठिन है, मगर मान सम्मान में अवश्य वृद्धि होती है। आत्मसंतुष्टि रहती है, इसका भी अपना सुख है। सचिव साहब ने जब मेरी पीठ थपथपाई कितना आनन्द मिला था। मुझे धन के सुख से कहीं अधिक यह सुख लगा। अधिक धन होना भी सुख चैन हराम कर देता है। उसके खो जाने के गम में असली सुख भी खो जाता है। अपना सिद्धांत है, "सांई इतना दीजिए जाके कुटुम्ब समाय। मै भी भूखा न रहूँ, साधू न भूखा जाय।" बहुत अधिक संग्रह करके क्या करूँगा ? (आधुनिक मीराबाई- उमा सिंह)



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