नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

मंगलवार, 6 दिसंबर 2022

माँ-बाप के ऋण

कैसी तबियत है आपकी!

खाना खा लिए या अभी नहीं!

और सब तो ठीक-ठाक है न!

फोन पर सिर्फ इतना सुन लेने से

दिन में दो बार

खुश हो जाते हैं माँ-बाप

क्योंकि वह जानते हैं कि

बेटा सिर्फ इतना ही पूछ सकता है

वह चाहकर भी नहीं पूछ पाता है

कि कुछ रूपये-पैसे की जरुरत तो नहीं है न!

चाहता तो जरुर होगा बेटा यह पूछना!

मगर क्या करे, उसकी भी तो गृहस्थी है न

उसके बीवी-बच्चे हैं शहर में

जिनकी जरूरतें भी तो हजार होती हैं

मंहगाई के इस ज़माने में

इसलिए वह नहीं पूछ पाता

अपने माँ-बाप से कभी भी

हाँ, मगर जब भी आता है गाँव

तो अपने बीवी-बच्चों से छुपाकर

पकड़ा देता है हजार-पांच सौ रूपये

मुक्त हो जाता है अपने कर्तव्यों से

और माँ-बाप के ऋणों से भी वह...

            (कृष्णधर शर्मा 6.12.2022)

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