लगभग रोज ही देखता है वह
अपने पिताजी का टूटा हुआ धुंधला चश्मा
और लगभग रोज ही सोचता है वह
कि किसी दिन समय निकालकर
जरुर ठीक करवा देगा पिताजी का टूटा हुआ चश्मा
सुबह से शाम तक जीवन की आपाधापी में
रोजी-रोटी कमाने की जद्दोजहद में
टलता जाता है पिताजी का टूटा हुआ चश्मा
हालाँकि वह इस बारे में काफी ईमानदार है
मगर सचमुच ही समय नहीं निकाल पाता
पिताजी के टूटे हुए चश्में को ठीक करवाने के लिए
एक दिन वह काम से जल्दी निकला और उसने सोचा
कि आज पिताजी का टूटा हुआ चश्मा भी
ठीक ही करवा दूंगा कुछ अन्य जरुरी कामों के साथ
जो टलते आ रहे थे महीनों से चश्मे के साथ ही
मगर अचानक घर से आता है फोन
कि जल्दी घर आओ, गिर पड़े हैं पिताजी
फिसलकर अचानक से, और उठ भी नहीं पा रहें हैं
सारे कामों को छोड़कर वह भागता है घर की तरफ
मगर उसके पहुँचने तक, नहीं बच
पाते पिताजी
बचा रह जाता है उनका टूटा हुआ चश्मा...
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Samajkibaat समाज
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