नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शनिवार, 11 फ़रवरी 2023

टूटा हुआ चश्मा

लगभग रोज ही देखता है वह

अपने पिताजी का टूटा हुआ धुंधला चश्मा

और लगभग रोज ही सोचता है वह

कि किसी दिन समय निकालकर

जरुर ठीक करवा देगा पिताजी का टूटा हुआ चश्मा

सुबह से शाम तक जीवन की आपाधापी में

रोजी-रोटी कमाने की जद्दोजहद में

टलता जाता है पिताजी का टूटा हुआ चश्मा

हालाँकि वह इस बारे में काफी ईमानदार है

मगर सचमुच ही समय नहीं निकाल पाता

पिताजी के टूटे हुए चश्में को ठीक करवाने के लिए

एक दिन वह काम से जल्दी निकला और उसने सोचा

कि आज पिताजी का टूटा हुआ चश्मा भी

ठीक ही करवा दूंगा कुछ अन्य जरुरी कामों के साथ

जो टलते आ रहे थे महीनों से चश्मे के साथ ही

मगर अचानक घर से आता है फोन

कि जल्दी घर आओ, गिर पड़े हैं पिताजी

फिसलकर अचानक से, और उठ भी नहीं पा रहें हैं

सारे कामों को छोड़कर वह भागता है घर की तरफ

मगर उसके पहुँचने तक, नहीं बच पाते पिताजी

बचा रह जाता है उनका टूटा हुआ चश्मा...

             (कृष्णधर शर्मा 11.02.2023)

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