नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

सोमवार, 27 फ़रवरी 2023

चलो अच्छा हुआ

 चलो अच्छा हुआ कि मर गए

उनकी भी जान छूटी और हमारी भी

नजरें बचाते हुए, उसने मन ही मन सोचा

वैसे भी, अक्सर बीमार ही तो रहते थे!

न अपने किसी काम के थे, न हमारे

उनके बदबूदार कपडे धोने से

नौकरानी भी कतराती थी अब तो

बहु की तो खैर बात ही नहीं

उनको भी तो, मर जाना चाहिए था

कई साल पहले ही

तब, जब माँ ही चल बसी थीं

कैंसर की लाइलाज बीमारी से

वैसे भी, इतने साल जीकर

आखिर क्या हासिल कर लिया उन्होंने  

बिस्तर पर ही तो पड़े थे पिछले दो सालों से

न उनको कहीं आना-जाना

न हम ही जा पाते थे उन्हें छोड़कर कहीं भी

दो-चार दिन घूमने के लिए भी

इस तरह की कई बातें सोचते हुए

दे रहा था तसल्ली अपने मन को

अपराध बोध से बचने के लिए...

              (कृष्णधर शर्मा 27.02.2023)


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