प्राचीन भारत के आदर्श में तरुण लोगों के लिए जगह नहीं है। सारे स्थान वृद्धों के ही लिए हैं। विरोधी पक्ष 'कॉज के लिए सर्मापत फ़ाख़्ता' छोकरों को ऊपर उठाता है और उन्हें नाम देता है 'तरुण तुर्क' । पार्टी वह भूल नहीं करती। मैदान मैं और मेनीफ़ेस्टो में वे युवकों से डबल जोर से पुकार कर कहते हैं, 'रक्त दो।' किन्तु कार्यकाल में किसी तरह गद्दी नहीं छोड़ते । एक भी नया काडर' तैयार नहीं करते। एक बार जो लीडर बन गया, आज भी वही लीडर है-सिर्फ वामपंथ में ! ब्लडप्रेशर, रक्त में शर्करा, हृद्धाप-सत्र लेकर आज भी वे नक़ली दाँत और लटकती खाल लिये पद संभाले हुए हैं। ब्रूटस की तरह ये ऑनरेबल मेन हैं।
हज़ारों कार्यकर्ताओं की हालत काली की तरह है। ये सब प्रश्न कलेजे में लिये तमाम लोगों को आउट ऑफ़ लॉयल्टी चुप रहना पड़ता है। पार्टी इमेज को रिइटरेट करके चलना पड़ता है। परिणामस्वरूप पत्नी-पुत्र- परिवार एक छत के नीचे रहते हुए भी दूर हो जाते हैं। होंठों के कोने लटक जाते हैं, चेहरे पर रेखाएँ पड़ जाती हैं, भयंकर रूप से आशाएँ टूट जाती हैं, मन का संताप कलेजे में दवाकर बढ़ते रहना पड़ता है।
यह प्रक्रिया नाशकारी है। पार्टी के पक्ष में। अच्छा काडर वह मिट्टी है जिस पर पार्टी खड़ी है। काडर के मन में प्रश्न उठते रहते हैं। उस मिट्टी का कटाव होता रहता है। थोड़े-थोड़े कटाव से धरती उर्वरता खोकर नष्ट हो जाती है। निचली मिट्टी में निरंतर मृदा का क्षरण होते रहने से पार्टी में धँसाव नहीं होगा ?
यह सोचकर ही काली साँतरा का मन बैठ जाता। उसके पहले काली मरना चाहता है। कार्यकर्ता के प्रति पार्टी के अन्यायी मनोभाव के फलस्वरूप खिसकाव होने से पार्टी नहीं रहेगी ? पार्टी नहीं रहेगी ? पार्टी न रहे, ऐसे दिन की बात काली साँतरा सोच नहीं सकता है। पार्टी सदा रहे, तुम रहो। तुम्हारे लिए मैंने अपने को कब का उजाड़ कर दिया है। वह 'सोने का बंगाल श्मशान बन गया' उसी 'जनयुद्ध' अखबार के जमाने से । मैन-मेड फ़ेमिन इन बेंगाल । मैन मेड फ़ेमिन । फ़ेमिन या दुभिक्ष इस तरह का नहीं होता है।
आदमी आदमी को नहीं समझता, पार्टी मनुष्य की समस्त सत्ता को लील जाती है और बदले में प्रयोजनीय स्नेह और अंडरस्टैंडिग देना भूल जाती है। परिणामस्वरूप मानव मनुष्यों के मन में एक और ही क़िस्म का अकाल तैयार करता है। मिट्टी का कटाव होने से आजकल पौधे बौने रह जाते हैं। (अग्निगर्भ- महाश्वेता देवी)
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