बच्चे चले गए शहर में कमाने
गांव जो हरे-भरे थे वीरान हो गए
बीमार बूढ़े पुकारते हैं अपने बच्चों को
मगर कोई आहट न सुनकर वह परेशान हो गए
जो घर रहते थे बच्चों की आवाजों से गुलज़ार
उन्हें खाली देख-देखकर हैरान हो गए
होली-दिवाली में बच्चों कि राह तकते हुए
रात में सूखी रोटी ही खाकर सो गए
जिनको पाला था बुढ़ापे की लाठी बनने
वही बच्चे आज अपनों से अनजान हो गए
गांव जो हरे-भरे थे वीरान हो गए ....
कृष्णधर शर्मा 29.5.24
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