नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

बुधवार, 29 मई 2024

गांव जो हरे-भरे थे

बच्चे चले गए शहर में कमाने

गांव जो हरे-भरे थे वीरान हो गए

बीमार बूढ़े पुकारते हैं अपने बच्चों को

मगर कोई आहट न सुनकर वह परेशान हो गए

जो घर रहते थे बच्चों की आवाजों से गुलज़ार

उन्हें खाली देख-देखकर हैरान हो गए

होली-दिवाली में बच्चों कि राह तकते हुए

रात में सूखी रोटी ही खाकर सो गए

जिनको पाला था बुढ़ापे की लाठी बनने

वही बच्चे आज अपनों से अनजान हो गए

गांव जो हरे-भरे थे वीरान हो गए .... 

              कृष्णधर शर्मा 29.5.24 

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