"एक खरगोश नारियल के पेड़ के नीचे आराम से सो रहा था, नींद में उसे यह ख्याल आया कि यह धरती फटने वाली है, इस धरती के फटने से सब कुछ नष्ट हो जाएगा। यह हरा-भरा जंगल धरती के फटते ही नीचे पातालदेश में पहुंच जाएगा। इसके साथ ही हम सब मारे जाएंगे।
डर के मारे खरगोश का सारा शरीर कांप उठा। उसने समझ लिया कि अब उसका आखिरी वक्त करीब आ रहा है, इसी बीच नारियल के पेड़ से दो-चार नारियल एकदम से टूटकर नीचे आ गिरे। उनके नीचे गिरते ही एक जोरदार धमाका सा हुआ जिसे सुनकर पहले से ही डरा हुआ खरगोश और डर गया। यह धमाका सुनते ही वह समझ गया कि वास्तव में ही धरती फटने लगी है...।
फिर क्या था, वह पागलों की भांति पेड़ के नीचे से उठकर भागा और साथ ही चीखने लगा- बचाओ, बचाओ। मौत आ रही है, बचाओ। उसे देखकर जंगल के और सारे जानवर भी भागने लगे और सब चिल्लाते जा रहे थे कि भागो-भागो धरती फटने वाली है, सब जान बचाकर भागो... (जातक कथाएं-नरेंद्र शर्मा)
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