नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

बुधवार, 2 अप्रैल 2025

अगर यक़ीं नहीं आता तो आज़माए मुझे,

वो आइना है तो फिर आइना दिखाए मुझे.!!


अजब चराग़ हूँ दिन रात जलता रहता हूँ,

मैं थक गया हूँ हवा से कहो बुझाए मुझे.!!


मैं जिस की आँख का आँसू था उस ने क़द्र न की,

बिखर गया हूँ तो अब रेत से उठाए मुझे.!!


बहुत दिनों से मैं इन पत्थरों में पत्थर हूँ,

कोई तो आए ज़रा देर को रुलाये मुझे.!!


मैं चाहता हूँ कि तुम ही मुझे इजाज़त दो,

तुम्हारी तरह से कोई गले लगाए मुझे.!!


बशीर बद्र



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