हाल के महीनों में बैंकिंग सिस्टम में लिक्विडिटी यानी नकदी
बढ़ाने के लिए रिजर्व बैंक (RBI) ने कई उठाए हैं, ताकि ब्याज
दरें कम हों और बैंक अपने ग्राहकों को सस्ता कर्ज दे सकें। कर्ज सस्ता करने के लिए
वह फरवरी से अब तक तीन बार में रेपो रेट भी एक प्रतिशत घटा चुका है। लेकिन अब
सिस्टम में लिक्विडिटी कर्ज की मांग की तुलना में बहुत ज्यादा हो गई है। इसलिए
रिजर्व बैंक इसे कम करने के उपाय करने जा रहा है। ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि
इस कदम का बैंक ब्याज दर पर क्या असर होगा।
क्या करने जा रहा है रिजर्व बैंक
RBI ने वैरिएबल रेट
रिवर्स रेपो नीलामी (RBI VRRR auction) की घोषणा की है। इस नीलामी के माध्यम से बैंकिंग रेगुलेटर सिस्टम से अतिरिक्त
लिक्विडिटी (banking liquidity absorption)
को बाहर निकालेगा। आरबीआई ने कहा है कि वह 27 जून, शुक्रवार की सुबह 10-10.30 बजे के दौरान इस नीलामी का
आयोजन करेगा। यह नीलामी सात दिन चलेगी। केंद्रीय बैंक सात महीने बाद वैरिएबल रेट
रिवर्स रेपो नीलामी करने जा रहा है। दिसंबर 2024
में संजय मल्होत्रा के गवर्नर बनने के बाद यह पहली VRRR नीलामी होगी।
क्या होता है वैरिएबल रेट रिवर्स रेपो
VRRR नीलामी में
सामान्य बैंक अपने पास मौजूद सरप्लस रकम को आरबीआई के पास जमा करते हैं। इस जमा पर
मिलने वाली ब्याज दर प्रतिस्पर्धी बोली के जरिए निर्धारित की जाती है। यह दर आमतौर
पर रिवर्स रेपो रेट के करीब या उससे कुछ अधिक होती है। इस समय फिक्स्ड रिवर्स रेपो
रेट 3.35% है।
बैंकिंग सिस्टम में कितना सरप्लस है लिक्विडिटी
वर्ष 2025 की शुरुआत में बैंकिंग सिस्टम में लिक्विडिटी की कमी थी। तब से ओपन मार्केट
ऑपरेशन (OMO) तथा अन्य
उपायों से आरबीआई अब तक 9.5 लाख करोड़ रुपये की लिक्विडिटी सिस्टम में ला चुका है। लेकिन पिछले कुछ दिनों
से सिस्टम में सरप्लस लिक्विडिटी की नौबत आ गई है। इसी महीने, 13 जून को सरप्लस लिक्विडिटी 3.62 लाख करोड़ रुपये पहुंच गई
जो तीन साल में सबसे ज्यादा है। जून में सरप्लस लिक्विडिटी औसतन 2.76 लाख करोड़ रुपये रही है।
लिक्विडिटी कम क्यों करना चाहता है RBI
अगर शॉर्ट-टर्म में दरें बहुत ज्यादा घट जाती हैं, तो संस्थान शॉर्ट-टर्म
मार्केट से अधिक उधार लेकर उसे लॉन्ग-टर्म के लिए लोन देते हैं। ऐसे में
अन-सिक्योर्ड लोन बढ़ने का जोखिम रहता है। सस्ती शॉर्ट टर्म फाइनेंसिंग पर अधिक
निर्भरता वित्तीय स्थिरता के लिए ठीक नहीं मानी जाती है। यही एक कारण है कि आरबीआई
लिक्विडिटी कम करने के उपाय करने जा रहा है।
कर्ज लेने की धीमी गति के कारण सरप्लस
आरबीआई ने 30 मई को बैंक कर्ज के आंकड़े जारी किए थे। इसके मुताबिक 18 अप्रैल 2025 को खत्म पखवाड़े में
नॉन-फूड बैंक क्रेडिट सिर्फ 11.2% बढ़ा। एक साल पहले इसमें 15.3% ग्रोथ हुई थी। उससे पहले 21 मार्च 2025 को खत्म
पखवाड़े में भी कर्ज वृद्धि दर 20% की तुलना में सिर्फ 10.4% रही थी।
यह गिरावट हर सेगमेंट में हुई है। कृषि और संबद्ध क्षेत्र
को कर्ज पिछले साल के 19.8% की तुलना में सिर्फ 9.2% बढ़ा है। इंडस्ट्री को कर्ज 6.9% के मुकाबले 6.7% और सर्विस
सेक्टर को 19.5% की तुलना में 11.2% बढ़ा है। होम, ऑटो और कंज्यूमर ड्यूरेबल
जैसे पर्सनल लोन सेगमेंट में 14.5% वृद्धि हुई, जबकि एक साल
पहले इसमें 17% वृद्धि हुई थी।
CRR भी घटाने जा रहा है आरबीआई
जून के पहले सप्ताह में RBI ने रेपो रेट घटाने के साथ कैश रिजर्व रेशियो (CRR) भी 4% से घटाकर 3% करने की घोषणा की थी। यह
कटौती चार बार में होगी और हर बार 0.25% की कमी की जाएगी। आखिरी कटौती 29 नवंबर 2025 को लागू होगी।
बैंकों को अपने पास जमा राशि का एक तय हिस्सा आरबीआई के पास रखना पड़ता है। इसे CRR कहते हैं। इसमें 1% कटौती से बैंकिंग सिस्टम
में 2.5 लाख करोड़
रुपये की लिक्विडिटी बढ़ेगी। शायह इसलिए भी बैंकिंग रेगुलेटर सरप्लस लिक्विडिटी को
कम करना चाहता है।
आरबीआई के कदम का लोन पर क्या होगा असर
आम तौर पर ग्राहकों की खातिर कर्ज सस्ता करने के लिए आरबीआई
लिक्विडिटी बढ़ाने के उपाय करता है। महंगाई दर ज्यादा बढ़ने पर जब उसे कर्ज महंगा
करना होता है तब वह लिक्विडिटी कम करने के उपाय करता है। कर्ज सस्ता कर आर्थिक गति
बढ़ाने के लिए केंद्रीय बैंक ने हाल में रेपो रेट घटाने और लिक्विडिटी बढ़ाने के
उपाय किए हैं। आरबीआई ने फिलहाल एक लाख करोड़ रुपये की लिक्विडिटी कम करने का
फैसला किया है, जबकि सरप्लस 2.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक
है। इसलिए केंद्रीय बैंक के इस कदम का बैंक कर्ज के ब्याज पर फिलहाल कोई असर नहीं
होगा।
सुनील सिंह
समाज की बात Samaj Ki Baat
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें