नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

सोमवार, 25 अप्रैल 2016

इंसान का स्वार्थ


लेकिन नदी तो खाली हो चुकी है
फिर तुम तैरने कहाँ जाओगे            
चिड़िया के बच्चे ने अपनी माँ से कहा
क्या कह रही हो माँ! ऐसा कैसे हो सकता है!
“इंसान सब कुछ कर सकता है
अपने स्वार्थ के लिए”
नदियों से पानी गायब कर सकता है
रेगिस्तान से रेत गायब कर सकता है
खेतों से फसलें गायब कर सकता है
जंगलों से पेड़ गायब कर सकता है
बच्चों का बचपन छीन सकता है
वह सब कुछ गायब कर सकता है
जो भी उसके स्वार्थ के आड़े आ सकता है
“मगर यह सब करने से तो
इंसान खुद ही मुश्किल में पड़ सकता है!
“हाँ इंसान को यह सब पता होता है”
“तो क्या इंसान अपने बच्चों को भी
स्वार्थवश मुश्किल में डाल सकता है!
“हाँ, इंसान अब सिर्फ अपनी परवाह करता है”
                           कृष्ण धर शर्मा २०१६

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