नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

सोमवार, 30 मई 2016

सब को बचाने के लिए


हवा को बचाना है, पानी को बचाना है

पृथ्वी को बचाना है, जीवों को बचाना है 

पेड़ को बचाना है, जंगल को बचाना है

जंगल में रहनेवाले जानवरों को बचाना है

झरने को बचाना है, नदी को बचाना है

बह सके जिसमें नदी, उस पहाड़ को बचाना है

बेटी को बचाना है, बूढ़े माँ-बाप को बचाना है

तेजी से बिखरते हुए, समाज को बचाना है

मानव को बचाना है, मानवता को बचाना है

मगर देखना मरने न पाए तुम्हारी आँखों का पानी

क्योंकि इन सब को बचाने के लिए जरूरी  

तुम्हारी आँखों के कोरों में पानी को बचाना है

                   (कृष्ण धर शर्मा, २०१६)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें