नमस्कार,आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757
रविवार, 11 सितंबर 2016
संगीत की कोई सरहद नहीं होती
गजल गायक गुलाम अली की बेहतरीन नज्मों और दिल को छू लेने वाली गजलों के दीवाने केवल पाकिस्तान में नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में मौजूद हैं। गुलाम अली की गजल गायिकी का जादू सरहद पार भारतीय प्रशंसकों में सिर चढ़कर बोलता है, और उनका कहना भी है कि संगीत की कोई सीमा नहीं होती और न कभी हो सकती है।
अपने बेटे आमिर अली के नए अलबम 'नहीं मिलना' की लॉन्चिंग के मौके पर दिल्ली आए गुलाम अली ने आईएएनएस के साथ विशेष बातचीत में आधुनिक संगीत में सुधार की बात पर जोर दिया।
गुलाम अली से जब पूछा गया कि आपकी गजलों के भारत में बहुत प्रशंसक हैं, आपको क्या लगता है कि आपके बेटे को भी लोग उसी तरह से पसंद करेंगे, इस पर उन्होंने कहा, "यह आमिर के काम पर निर्भर करेगा। आमिर जितना अच्छा काम करेंगे, लोग उन्हें उतना पसंद करेंगे, फिर चाहे वह भारत हो या पाकिस्तान।"
गुलाम अली बताते हैं, "मुझे संगीत की दुनिया में 60 साल से अधिक हो चुके हैं, लेकिन मैं अब भी खुद को शागिर्द समझता हूं। मैं ऐसे कई रागों, सुरों और शास्त्रीय संगीत को सीखने का प्रयास करता रहता हूं, जिसे मैंने पहले नहीं सुना होता है। मैं उस चीज के पीछे पड़ जाता हूं और उसे लगातार सीखने की कोशिश करता रहता हूं।"
गुलाम अली से जब पूछा गया कि क्या आपके प्रसंशक भारत में पाकिस्तान से अधिक हैं, तो इस पर उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, "मुझे भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में ही प्यार मिलता है। यहां लोग ज्यादा हैं, इसलिए यहां का प्यार भी ज्यादा है।"
आधुनिक और पाश्चात्य संगीत के बीच गजलों के प्रशंसकों की घटती संख्या को स्वीकारते हुए गुलाम अली ने बताया, "जाहिर तौर पर गजलों के प्रशंसकों की संख्या कम हो रही है, लेकिन गजल-गायिकी और शास्त्रीय संगीत के माहौल में बढ़ने वाले बच्चे गजलों से अछूते नहीं हैं। भारत और पाकिस्तान में विदेशी संगीत का बोलबाला तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन विदेशों में भी गजलों के दीवाने मिल जाते हैं।"
रैप, हिप-हॉप और तड़क-भड़क वाले संगीत से गुलाम अली इत्तेफाक नहीं रखते। उनका कहना है कि इन गीतों का सिरा ही गलत होता है। गुलाम अली बताते हैं, "इस तरह के गीत-संगीत के सिरे नहीं होते हैं और उनका कंपोजीशन भी अटपटा ही रहता है। शुद्ध संगीत दिल को छू लेने वाला होता है।"
उन्होंने कहा, "गायक, गीतकार, संगीतकार और संगीत से जुड़े तमाम लोगों को अच्छा संगीत देने की कोशिश करनी चाहिए। आजकल गीत लिखते वक्त गीतकार का ध्यान अंग्रेजी और दूसरी भाषाओं की ओर अधिक होता है। गीत लिखने के लिए बहुत ही समझदारी होनी चाहिए।"
श्रोताओं तक कर्णप्रिय संगीत पहुंचाने और बनावट से भरे संगीत को दूर रखने के लिए गुलाम अली का क्या सुझाव है?, पूछने पर उन्होंने कहा, "फिल्मी गीतों को आसान बनाकर लोगों के बीच पेश किया जा रहा है, जिससे उन्हें सुनने वालों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन जो लोग गीतों को समझते हैं, वे इस तरह के संगीत को नहीं पसंद करते। हमेशा ही हल्की बात अधिक प्रसिद्ध होती है, लेकिन मेरे अनुसार वह शुद्ध संगीत नहीं है।"
उन्होंने कहा, "संगीत को पेश करने से पहले उसे सीखना और समझना बहुत जरूरी है। मैं अपने स्तर से इस तरह के संगीत को रोकने की कोशिश करता हूं और अपनी हद तक हर कोई इसे रोक सकता है।"
इस समय भारत-पाकिस्तान के संबंध उतार-चढ़ाव के दौर से गुजर रहे हैं, लेकिन संगीत देशों की दूरियों को दूर कर रहा है। सरहदों को पार कर दोनों देशों में बह रही संगीत की बयार पर गुलाम अली कहते हैं, "आवाज की कोई सरहद नहीं होती और संगीत को किसी सीमा में बांधा नहीं जा सकता।"
आपके भारत आने का बार-बार विरोध होता रहा है, इस पर आपका क्या कहना है?, इस सवाल पर गुलाम अली ने कहा, "किसी को यह नहीं सोचना चाहिए कि कौन गा रहा है, बल्कि यह सोचना चाहिए कि क्या गा रहा है। मैं जब टेलीविजन पर गाता हूं, तो मुझे पूरी दुनिया सुनती है। मुझे विरोधों की परवाह नहीं है।"
(Interviewer :IANS)(साभार-देशबंधु)
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