नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018

अभिशप्त कथा- मनु शर्मा

 "आवेग का ज्वर जब उतरता है तब पश्चाताप के पंक के अतिरिक्त और कुछ नहीं रह जाता है। और ऐसे ही क्षणों में मनुष्य आत्म-विश्लेषण करता है। वह स्वयं को उधेड़ता है, परत-दर-परत खोलता चलता है। ये पल होते हैं अंतर्मंथन के। यह समय होता है अपनी अस्मिता से साक्षात्कार का  इस समय उसकी मानसिकता सुरत्व को असुरत्व से अलग करके देखती है, सत्य को तर्क से हटाकर परखती है, प्रकाश को अंधकार से छानकर पीती है। संध्या होते-होते आचार्य इसी मानसिकता में आ गए थे।" (अभिशप्त कथा- मनु शर्मा)



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