"उन्हें तो अपने पति-परमेश्वर से मतलब था। वे उन संस्कारों से आई थीं ,जहाँ औरतें यह मानकर चलती हैं कि मर्द तो कुत्ता होता ही है। भड़िहाई तो उसका गुण-धर्म है। सो, कुंतीजी के लिए इसका कोई अर्थ नहीं था कि गुरु कितनी हाँडियों में मुँह डालते हैं।" "नमो अन्धकारं" - दूधनाथ सिंह
नमस्कार,आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757
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