ओ नदी! तुम कितनी
अच्छी
तुम हो बिलकुल माँ
के जैसी
लोगों के संताप तुम
हरती
सबको तुम निष्पाप
हो करती
सबकी गंदगी खुद में
लेकर
तुम लोगों के दुःख
हो हरती
बाहर से तुम दिखती
चंचल
अन्दर से तुम कितनी
शीतल
तर जाते हैं हम सब
प्राणी
पीकर तुम्हारा निर्मल
जल
ओ नदी! तुम कितनी
अच्छी
तुम तो बिलकुल माँ
के जैसी
(कृष्ण धर शर्मा, 11.2017)
सच जीवनदात्री है नदी
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
बहुत-बहुत धन्यवाद कविता जी
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