"जिन लोगों के वैवाहिक सम्बन्ध, या इसी किस्म के दीर्घकालिक सम्बन्ध टूट जाते हैं, उनके पहले कुछ दिन, हफ्ते और महीने बड़ी मुश्किल से बीतते हैं। उन्हें अपने साथ तरह-तरह के समझौते करने पड़ते हैं, अपने अभिभावकों, और उनके साथ उनके सगे-सम्बन्धियों, अपने बच्चों, भाइयों और बहनों जैसे रिश्तेदारों के पुराने सम्बन्धों में सामंजस्य स्थापित करना पड़ता है। उन्हें अपनी मित्रमंडली के सदस्यों की अनेकानेक जिज्ञासाओं की भूख को भी विस्तार से तृप्त करना पड़ता है। ऐसे सवाल पूछे जाते हैं कि उनका जवाब देना बड़ा कठिन हो जाता है" (औरतें-खुशवन्त सिंह)
नमस्कार,आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757
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