नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

रविवार, 29 जुलाई 2018

अग्निगर्भा-अमृतलाल नागर

 "किसी प्राचीन गढ़ी के खण्डहरों के किनारे-किनारे खलार की धरती में लगभग पचास-साठ घरों की बस्ती भले ही दिल्ली, बम्बई, कलकत्ते जैसी न चमके पर अपने जीवन के अस्तित्व से अवश्य ही देदीप्यमान है।" (अग्निगर्भा-अमृतलाल नागर)


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सोमवार, 23 जुलाई 2018

आँखों देखा पाकिस्तान- कमलेश्वर

 "आम पाकिस्तानी मानता है कि भारत ने चौतरफा विकास किया है। बड़े उद्योग लगाये हैं और वह हर तरह से पाकिस्तान से आगे है, पर उसे भारत पाक की साझी विरासत मंजूर नहीं है। असल में पार्टीशन को सही और पाकिस्तान के निर्माण को जरूरी साबित करने के जोश में पाकिस्तान के कुछ बुद्धिजीवियों ने, जो भारत-पाक अलगाव को तंग-नजरी से देख रहे थे, उन्होंने बहुत जल्दी में कुछ कच्चे तर्क और लंगड़े सिद्धान्त यानी थ्योरीज तैयार कीं। इन्हें तैयार करने में कुछ तास्सुबी इतिहासकार हावी हो गये।  इसी तरह की सोच वाले मुस्लिम साहित्यकार हालांकि बंगलादेश बन जाने से खुश नहीं हैं पर वे इस बात से बहुत खुश हैं कि पाकिस्तान से अलग होने के बाद भी बंगलादेश इस्लामी मुल्क बना रहा और भारत में शामिल नहीं हुआ" (आँखों देखा पाकिस्तान- कमलेश्वर)




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सोमवार, 9 जुलाई 2018

रंगभूमि-मुंशी प्रेमचन्द

 "भोजन, निद्रा और विनोद, ये ही मनुष्य जीवन के तीन तत्व हैं। इसके सिवा सब गोरख धंधा है। मैं धर्म को बृद्धि से बिलकुल अलग समझता हूं। धर्म को तोलने के लिए बुद्धि उतनी ही अनुपयुक्त है, जितना बैंगन तोलने के लिए सुनार का कांटा। धर्म धर्म है, बुद्धि बुद्धि। या तो धर्म का प्रकाश इतना तेजोमय है कि बुद्धि की आंखें चौंधिया जाती हैं या इतना घोर अंधकार है कि बुद्धि को कुछ नजर ही नहीं आता।" (रंगभूमि-मुंशी प्रेमचन्द)



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गुरुवार, 5 जुलाई 2018

जाने कितने रंग पलाश के - मृदुला बाजपेयी


"से ला पास तक पहुँचना क्या आसान था? 14 हजार फीट की ऊँचाई और कड़ाके की सर्दी। चारों तरफ बर्फ़ ही बर्फ़ थी। हमारी फ़ौज के पास न तो सर्दी से बचने के पर्याप्त कपड़े थे, न ही अन्य कोई सामान और न ही पर्याप्त मात्रा में हथियार व् गोला बारूद। सब कुछ इतना अप्रत्याशित था। अजीब अफ़रा-तफ़री का माहौल था। किसी को कुछ भी ठीक-ठीक पता न था। शायद भारतीय सेना लड़ाई के लिए तैयार ही नहीं थीं" (जाने कितने रंग पलाश के-मृदुला बाजपेयी)

बुधवार, 4 जुलाई 2018

जाने कितने रंग पलाश के - मृदुला बाजपेयी

 "से ला पास तक पहुँचना क्या आसान था? 14 हजार फीट की ऊँचाई और कड़ाके की सर्दी। चारों तरफ बर्फ़ ही बर्फ़ थी। हमारी फ़ौज के पास न तो सर्दी से बचने के पर्याप्त कपड़े थे, न ही अन्य कोई सामान और न ही पर्याप्त मात्रा में हथियार व् गोला बारूद। सब कुछ इतना अप्रत्याशित था। अजीब अफ़रा-तफ़री का माहौल था। किसी को कुछ भी ठीक-ठीक पता न था। शायद भारतीय सेना लड़ाई के लिए तैयार ही नहीं थीं" (जाने कितने रंग पलाश के-मृदुला बाजपेयी)



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