"किसी प्राचीन गढ़ी के खण्डहरों के किनारे-किनारे खलार की धरती में लगभग पचास-साठ घरों की बस्ती भले ही दिल्ली, बम्बई, कलकत्ते जैसी न चमके पर अपने जीवन के अस्तित्व से अवश्य ही देदीप्यमान है।" (अग्निगर्भा-अमृतलाल नागर)
नमस्कार,आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757
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