नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

मंगलवार, 4 दिसंबर 2018

वतन


                                                    
सरकारी अस्पताल में घायल जवान की मरहम पट्टी करते हुए नर्स ने पूछा
"आप को इतनी सारी चोटें कैसे लगीं!"
जवान ने जख्मों के दर्द को दबाते हुए चेहरे पर बनावटी मुस्कान लाते हुए कहा 
"वतन की मोहब्बत के जख्म हैं ये"
नर्स ने कहा 
"मैं समझी नहीं!" 
"मुहब्बत में तो सुकून मिलता फिर जख्म कैसे!"
जवान ने फिर हँसते हुए कहा 
"वह मोहब्बत ही कैसी जिसमें जख्म न मिलें"
इतना कहते-कहते जवान की आवाज ने गंभीरता का लबादा ओढ़ लिया था.
"हम अपने वतन और वतनवालों की हिफाजत में अपनी जान की बाजी तक लगा जाते हैं, मगर वतनवाले हमारा स्वागत पत्थर मारकर करते हैं
नर्स ने कहा 
"मगर पत्थर तो लोग पागलों को मारते हैं न!"
जवान ने फिर हँसते हुए कहा 
"हम भी किसी पागल से कम कहाँ हैं! जो अपना सबकुछ छोड़कर वतन की हिफाजत में अपनी सारी जिंदगी गुजार देते हैं!”
नर्स यह सुनकर खुद भी जवान को पागलों की तरह देखती रह गई
         (कृष्णधर शर्मा) 05.08.2018

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