"इस धरती पर एक विशेष प्रकार के प्राणी हैं, जो मानो फूस की आग हैं। वे तत्काल जल उठते हैं और झटपट बुझ भी जाते हैं। उनके पीछे हमेशा एक आदमी रहना चाहिए, जो जरूरत के अनुसार उनके लिए फूस जुटा दिया करे। जैसे गृहस्थ घरों की कन्याएं, मिट्टी के दीये जलाते समय उनमें तेल और बाती डालती हैं, उसी तरह वे उसमें एक सलाई भी रख देती हैं। जब दीपक की लौ कुछ कम होने लगती है, तब उस छोटी-सी सलाई की बहुत आवश्यकता पड़ती है। यदि वह न हो, तो तेल और बाती होते हुए भी, दीपक का जलना नहीं हो सकता।" (बड़ी दीदी-शरतचंद्र चट्टोपाध्याय)
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