"अध्ययन का उद्देश्य सत्य की खोज था और नरेंद्र जिसे सत्य समझ लेता था, उसकी जी-जान से रक्षा करता था। जब देखता था कि कोई दूसरा उसके विपरीत भाव या मत व्यक्त कर रहा है तो नरेंद्र चट विवाद पर उतर आता था और अपने सशक्त तर्कों और युक्तियों द्वारा उसे परास्त करके दम लेता था। पराजित व्यक्ति के बार बिलबिला उठते थे और नरेंद्र पर दम्भी होने का आरोप लगाने में भी संकोच नहीं करते थे। पर नरेंद्र के मन में किसी के प्रति द्वेष भाव नहीं था। और अपनी ही बात को ऊंचा रखने के लिए वह कभी कुतर्क का सहारा नहीं लेता था। उसे जो कहना होता था दूसरे के सामने साफ-साफ कहता था।" (योद्धा संन्यासी विवेकानन्द- हंसराज रहबर)
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