नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

सोमवार, 24 दिसंबर 2018

योद्धा संन्यासी विवेकानन्द- हंसराज रहबर

 "अध्ययन का उद्देश्य सत्य की खोज था और नरेंद्र जिसे सत्य समझ लेता था, उसकी जी-जान से रक्षा करता था। जब देखता था कि कोई दूसरा उसके विपरीत भाव या मत व्यक्त कर रहा है तो नरेंद्र चट विवाद पर उतर आता था और अपने सशक्त तर्कों और युक्तियों द्वारा उसे परास्त करके दम लेता था। पराजित व्यक्ति के बार बिलबिला उठते थे और नरेंद्र पर दम्भी होने का आरोप लगाने में भी संकोच नहीं करते थे। पर नरेंद्र के मन में किसी के प्रति द्वेष भाव नहीं था। और अपनी ही बात को ऊंचा रखने के लिए वह कभी कुतर्क का सहारा नहीं लेता था। उसे जो कहना होता था दूसरे के सामने साफ-साफ कहता था।" (योद्धा संन्यासी विवेकानन्द- हंसराज रहबर)




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