"अपने सबके अन्दर चाहे कोई कितना भी छोटा हो पर सबकी गहराई अन्दर की गहरी है- खुद अपने अन्दर भी गिरते पड़ते रहते हैं एक और संसार अपनी गहराई में चाहे उल्टा बसा हो बाहर के संसार से कभी वहीं रहे आने का मन करता है रह लेना चाहिए। (हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़-विनोद कुमार शुक्ल)
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