नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

बुधवार, 5 दिसंबर 2018

हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़-विनोद कुमार शुक्ल

 "अपने सबके अन्दर चाहे कोई कितना भी छोटा हो पर सबकी गहराई अन्दर की गहरी है- खुद अपने अन्दर भी गिरते पड़ते रहते हैं एक और संसार अपनी गहराई में चाहे उल्टा बसा हो बाहर के संसार से कभी वहीं रहे आने का मन करता है रह लेना चाहिए। (हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़-विनोद कुमार शुक्ल)




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