नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शनिवार, 23 फ़रवरी 2019

हिंदी की वर्तनी-संत समीर

 "यह भी आश्चर्य की ही बात है कि अपने ढाई हज़ार चिन्हनुमा अक्षरों के साथ चीनी भाषा निरंतर विकसित हो रही है, जापानी की चित्रात्मक लिपि जापानियों को परेशान नहीं करती, पर हिंदी की वैज्ञानिकता बचाये रखने भर को सिर्फ़ इने-गिने वर्णों-शब्दों का शुद्ध इस्तेमाल भी हमारे मीडिया महारथियों को बोझ लग रहा है। आश्चर्य यह भी है कि ये ही लोग अंग्रेजी में हिज्जे की एकाध गलती से उद्विग्न हो उठते हैं, पर हिंदी में घोर अराजकता भी इन्हें परेशान नहीं करती। टी.वी. चैनलों और अखबारों -पत्रिकाओं से भले तो 'अंतरजाल' (इंटरनेट) के चिट्ठे (ब्लॉग) हैं, जहाँ चिट्ठाकारी कर रहे नवसिखुवे तक टूटी-फूटी और काफ़ी हद तक अराजक किस्म की हिंदी लिखते हुए भी निरंतर भाषा-सुधार का अभियान-सा चलाए हुए हैं और हिंदी के अनुकूल तकनीकी सुधार भी कर रहे हैं। (हिंदी की वर्तनी-संत समीर)



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