"उस ब्रह्मा ने जिसको जिस कर्म में लगाया था, वह बार-बार उसी कर्म को करने लगा। हिंसा, अहिंसा, मृदु, क्रूर, धर्म, अधर्म, सत्य और असत्य की सृष्टि के प्रारम्भ में जो जिस-जिसके लिए बनाया; वह बार-बार उसी को स्वयं ही प्राप्त होने लगा। सतयुग ब्राह्मण, त्रेता क्षत्रिय, द्वापर वैश्य और कलि को शूद्र कहा गया है। ब्राह्मणों से भी विद्वान श्रेष्ठ हैं, विद्वानों में कृतबुद्धि (शास्त्रोक्त कर्तव्य में बुद्धि रखने वाले) श्रेष्ठ हैं, कृतबुद्धियों में अनुष्ठान (शास्त्रोक्त कर्तव्य के अनुसार आचरण करनेवाले) श्रेष्ठ हैं और उनमें ब्रह्मज्ञानी श्रेष्ठतम हैं। वेदों तथा स्मृतियों में कहा गया है कि आचार ही श्रेष्ठ धर्म है। आत्महिताभिलाषी द्विज का इसके पालन में प्रयत्नशील होना चाहिए। आचार भ्रष्ट ब्राह्मण वेद के फल को नहीं पाता है और आचारवान ब्राह्मण सम्पूर्ण फल का भागी होता है।" (मनुस्मृति-महर्षि मनु)
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