"आशा रानी का स्क्रीन टेस्ट उस रात साढ़े आठ बजे जाकर हुआ था। उन्हें न कुछ खाने को मिला था, न पीने को और जब उसने टॉयलेट के बारे में पूछा था, तो किसी ने स्टूडियो के एक गंदे कोने की ओर इशारा करते हुए कहा था,
"वहाँ चली जाओ। नखरे मत करो।" किशनभाई ने उस गंधाते कोने तक जाने वाले तांग रास्ते को बड़ी शान से तब तक रोके रखा था, जब तक आशा रानी ने पेशाब नहीं कर लिया था। उसने देखा था कि आशा रानी का दमखम टूटने लगा है। आशा रानी के लिए उसने एक पैकिट नरम-नरम बिस्कुटों का इंतजाम करा दिया था, जिन्हें उसने जल्दी-जल्दी खा लिया था। फिर उसने डरते-डरते अम्मा से "कॉफी" के लिए कहा था। अम्मा ने धीमे-से लेकिन बिगड़ते हुए कहा था, "
यहाँ कोई "कॉफी" नहीं मिलेगी। चुप रहो और इंतजार करो--बाद में खाने-पीने के लिए बहुत समय मिलेगा। इस समय बस अपने टेस्ट पर ध्यान लगाओ।" आशा रानी ने दुखी मन से हाँ कर दी थी और घी में भीगे भात के ऊपर गरमागरम साँभर से अपना ध्यान बँटाने की कोशिश करने लगी थी।" (सितारों की रातें- शोभा डे)
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