नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

मंगलवार, 10 सितंबर 2019

श्रेष्ठ कहानियां- आबिद सुरती

"क्या देखा सपने में?" 

"शंकर जी।" वह बोला, "कह रहे थे- लोकनाथ, हम तुम्हें एक मिनट का समय देते हैं। तुम जो माँगोगे सो मिल जाएगा।" 

"सच!" माँ बज उठी, "फिर तूने क्या माँगा?" 

"मैं सोचता रह गया और मिनट बीत गया।" 

"अरे पगले!" अनजाने अपनी आवाज में दुख घोलते हुए माँ ने कहा, "कम से कम अपने लिए आँखें ही माँग ली होतीं।" "तब भोलेनाथ की नजरों से मैं गिर न जाता!" 

वह बोला, "वह क्या सोचते? यह लोकनाथ कैसा स्वार्थी इंसान है। सारा जग दुखियारा है और अपने लिए वह खुशियाँ माँग रहा है।" 

उसका जवाब सुनकर माँ को हैरत न हुई। वह जानती थी। अपनी कोख से उसने बेटे को नहीं , किसी संत को जन्म दिया था।" (श्रेष्ठ कहानियां- आबिद सुरती")



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