नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

गुरुवार, 20 सितंबर 2018

थके पांव- भगवतीचरण वर्मा

 "उस अन्तहीन अवगत पथ के साथ एक अनिवार्य गति भी है जो जिंदगी कहलाती है। इस गति की सीमाएँ हैं जन्म और मृत्यु के रूप में। इस गति का आरम्भ जन्म के साथ होता है, इस गति का अन्त मृत्यु के साथ होता है। जन्म और मृत्यु के बीच इस गति में कहीं किसी प्रकार का व्यक्तिक्रम नहीं। इस गति से किसी को कहीं कोई छुटकारा नहीं।" (थके पांव- भगवतीचरण वर्मा)



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