नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

अछूत- मुल्कराज आनंद

 "अछूतों को कुंए की दीवार चढ़ने की मनाही थी। यदि वे कुंए से पानी निकाल लेते, तो उच्च वर्ण के हिन्दुओं के अनुसार पानी भ्रष्ट हो जाता। इसी प्रकार उन्हें कुंए के पास बने नाले तक जाना भी मना था; क्योंकि इस प्रकार नाला भी भ्रष्ट हो जाता। अछूतों का अपना कोई कुंआ नहीं था। बुलाशाह जैसे पहाड़ी शहर में कुंआ खोदने के लिए कम से कम एक हजार रुपयों की लागत आती। लाचार होकर उन्हें सवर्ण हिन्दुओं के चरणों में बैठकर ही, उनकी दया पर ही निर्भर रहना होता था, ताकि वे उनके घड़ों में कुछ पानी उडेल दें। (अछूत- मुल्कराज आनंद)




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