"अछूतों को कुंए की दीवार चढ़ने की मनाही थी। यदि वे कुंए से पानी निकाल लेते, तो उच्च वर्ण के हिन्दुओं के अनुसार पानी भ्रष्ट हो जाता। इसी प्रकार उन्हें कुंए के पास बने नाले तक जाना भी मना था; क्योंकि इस प्रकार नाला भी भ्रष्ट हो जाता। अछूतों का अपना कोई कुंआ नहीं था। बुलाशाह जैसे पहाड़ी शहर में कुंआ खोदने के लिए कम से कम एक हजार रुपयों की लागत आती। लाचार होकर उन्हें सवर्ण हिन्दुओं के चरणों में बैठकर ही, उनकी दया पर ही निर्भर रहना होता था, ताकि वे उनके घड़ों में कुछ पानी उडेल दें। (अछूत- मुल्कराज आनंद)
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