नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शनिवार, 25 जुलाई 2020

भारत विकास की दिशाएं- अमर्त्य सेन, ज्यां दृज

 "स्वतंत्र भारत की विफलताओं के लिए अक्सर बाजार अभिप्रेरणाओं के अपर्याप्त विकास को उत्तरदायी ठहराया जाता है। हमारा तर्क होगा कि यह विचार काफी हद तक ठीक होते हुए भी देश की सभी विफलताओं के निदान के लिए पर्याप्त नहीं है। ये विफलतायें अनेक हैं, जैसे - सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था, स्वास्थ्य सेवाएँ, सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था, स्थानीय लोकशाही, पर्यावरण प्रतिरक्षण आदि। बाजार अभिप्रेरणाओं को कुंठित रखना तो इस व्यापक परिदृश्य का एक अंगमात्र है। इन विफलताओं को केवल सरकारी 'अतिसक्रियता' का परिणाम मानना ठीक नहीं होगा। जहाँ किन्हीं क्षेत्रों में सरकार अतिसक्रिय रही है वहीं अन्य कार्यों में इसकी 'निष्क्रियता' भी आकलन क्षमता से परे रही है।"

 (भारत विकास की दिशाएं- अमर्त्य सेन, ज्यां दृज)



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