"स्वतंत्र भारत की विफलताओं के लिए अक्सर बाजार अभिप्रेरणाओं के अपर्याप्त विकास को उत्तरदायी ठहराया जाता है। हमारा तर्क होगा कि यह विचार काफी हद तक ठीक होते हुए भी देश की सभी विफलताओं के निदान के लिए पर्याप्त नहीं है। ये विफलतायें अनेक हैं, जैसे - सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था, स्वास्थ्य सेवाएँ, सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था, स्थानीय लोकशाही, पर्यावरण प्रतिरक्षण आदि। बाजार अभिप्रेरणाओं को कुंठित रखना तो इस व्यापक परिदृश्य का एक अंगमात्र है। इन विफलताओं को केवल सरकारी 'अतिसक्रियता' का परिणाम मानना ठीक नहीं होगा। जहाँ किन्हीं क्षेत्रों में सरकार अतिसक्रिय रही है वहीं अन्य कार्यों में इसकी 'निष्क्रियता' भी आकलन क्षमता से परे रही है।"
(भारत विकास की दिशाएं- अमर्त्य सेन, ज्यां दृज)
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