छुट्टी नहीं मिल पाई है माँ!
मालिक का भी दोष नहीं है माँ
क्या करें! काम ही बहुत सारा है
इतनी सारी जिम्मेदारी है मेरे सिर
मैंने आने की बहुत कोशिश की माँ
मगर क्या करूँ! नौकरी तो करनी है न
त्योहारों में गाड़ी में रिजर्वेशन भी
कहाँ मिल पाता है माँ
आपको तो पता है मेरी मजबूरी
फिर यहाँ मेरा भी तो परिवार है न
त्योहार में मेरे घर जाने से
बच्चे भी तो दुखी होंगे न!
मुझे तो बहुत कुछ देखना पड़ता है माँ
मोबाइल फोन को कान में लगाये
बेटे की मजबूरियों को सुनती हुई माँ
सोचने लगती है कि बेटा तो
सचमुच ही घर आना चाहता था
मगर नौकरी की दुश्वारियों के चलते
अपने ही घर नहीं आ पा रहा है
भोली माँ यह बिलकुल नहीं समझ पाती
कि दिवाली में भला कौन काम करता है
या किसे छुट्टी नहीं मिल पाती है
खैर! अब तो माँ ने भी बिना बच्चों के
दिवाली और होली मनाना सीख लिया है...
(कृष्ण धर शर्मा, 29.10.2019)
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