पर ख़त्म नहीं कर कर पाते हो
अपनी असफलताओं पर भी
तुम क्यों इतना इतराते हो
थक चुके हो जला-जलाकर
तुम बाहर के रावण को
कभी झांककर देखो तुम
अपने भीतर के रावण को
इस रावण को मरोगे तो
तभी मरेगा असली रावण
वरना तुम्हारी कई पीढियां
जलाती रहेंगी कागजी रावण
(कृष्ण धर शर्मा, 08.10.2019)
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