नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शनिवार, 15 अगस्त 2020

अवांछित

तुम बनाओ अच्छे-अच्छे मकान
बड़ी-बड़ी साफ़-सुथरी कालोनियां
उनमें बनें ख़ूबसूरत बाग़-बागीचे
जिसमें सुबह की सैर पर आ सकें
संभ्रांत और आभिजात्य लोग
मगर यह भी ध्यान रखना कि,
उन कालोनियों, बाग़-बागीचों में
घुसने न पायें गंदे कपडे पहने हुए
भूखे-नंगे और फटेहाल गरीब लोग
नहीं तो तुम्हारी आभिजात्यता को
पहुँच सकती है चोट, हो सकती है आहत
तुम बनाओ अच्छी-अच्छी चमचमाती
और बेहद ही साफ-सुथरी मखमली सड़कें
जिस पर चल सको तुम और तुम्हारे जैसे
सभ्य, संभ्रांत और आभिजात्य लोग
हाँ मगर यह भी ध्यान रखना कि,
उसमें घुसने न पायें कोई भी ठेलेवाले
फेरीवाले, सब्जीवाले या रिक्शेवाले
नहीं तो पड़ सकती है बाधा, रूकावट
तुम्हारे बनाये नियमों, कानूनों में
तुम्हें हो सकती है एलर्जी
ऐसे लोगों को देखकर
जो हैं तुम्हारी बनाई हुई
व्यवस्था में अनचाहे अवांछित

       (कृष्ण धर शर्मा, 04.01.2020)

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