नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शनिवार, 15 अगस्त 2020

ऐ जिंदगी जाने दे मुझे अनजानी राहों में

जिंदगी की बेतरह, बेवजह
भागम-भाग से थककर
जब उसने, मौत को
अपने गले लगाना चाहा
जिंदगी हर बार उसका
रास्ता रोककर खड़ी हो गई
तुम मुझे अपनी कैद से
आजाद क्यों नहीं होने देती!
जब-जब उसने पूछा सवाल
जिंदगी ने दिया उसे हरबार
वही रटा-रटाया जवाब
इससे पहले कि मौत को
तू अपने गले से लगा
अरे! जाने से पहले मेरा
कर्ज तो चुकाता जा...

              (कृष्ण धर शर्मा, 11.08.2020)

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