"इन वन प्रान्तों में रहकर हमेशा से लगता था मुझमें जो ऊर्जा है वह यहां बहने वाली वायु से मिलती है। बसंत ग्रीष्म में आम के बौरों व काजू के फूलों से उठती मदमस्त गंध से, लाल टेसू के फूलों की लालाई से। मानों निश्छल पवन अपने अदृश्य झूलों में बिठाकर एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाती हो। इस प्राकृतिक ऊर्जा से लैस हर वक्त तरोताजा महसूस होता है। पर शहर की बंद गलियों में इस शरीर का रहना जीवन की भौतिक मजबूरी है। आत्मा तो आज भी गांव के खेत-खलिहान, जंगल-बियावान में भटकती है।"
(बस्तर मेरा देश- सनत कुमार जैन)
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