नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

गुरुवार, 27 अगस्त 2020

भादों की इस भारी बारिश में

कितने ही चेहरे खिल उठे होंगे
सूखे सावन के बाद हुई
भादों की इस भारी बारिश में
कितने ही अरमानों को आज
पंख मिल गए होंगे
भादों की इस भारी बारिश में
कितने ही तो भजिये खाकर
इतराते होंगे, इठलाते होंगे
भादों की इस भारी बारिश में
कितने ही कवि कवितायें
लिखते होंगे इस बारिश पर
भादों की इस भारी बारिश में
कितनी ही कच्ची दीवारों ने
दम तोड़ा होगा आज अपना
भादों की इस भारी बारिश में
कितने ही बेघर हुए होंगे आज
भादों की इस भारी बारिश में
कितने ही चूल्हे जले न होंगे
भादों की इस भारी बारिश में
चूल्हे को तकती आँखों को देख
कितनी ही माएं होंगी उदास
भादों की इस भारी बारिश में
            (कृष्ण धर शर्मा, 19.08.2020)

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