क्या सचमुच नहीं कांपते
तुम्हारे हाथ या हृदय!
क्या पाषाण हो चुकी हैं
तुम्हारी संवेदनाएं व् सोच
क्या तुम्हें नहीं दीखता
तुम्हारे बाद आनेवाली
पीढ़ी का भयावह भविष्य
जिसमें सांस लेना तक होगा मुश्किल
जिस तरह से अपने पूर्वजों के
लगाये हुए पेड़-पौधों से
तुम पाते हो फल-फूल, और
सुस्ताते हो उनकी शीतल छाँव में
सोचकर देखो कि तुम
क्या देकर जाओगे
अपने बच्चों को विरासत में
(कृष्ण धर शर्मा, 06.10.2019)
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