नहीं पड़ता हूँ किसी गुटबाजी में
नहीं
लिखा पाता अपना नाम
किसी
भी साहित्यिक संस्था के रजिस्टर में
नहीं
शामिल हो पाता देर रात तक चलनेवाली
बड़े-बड़े
लेखकों की बड़ी-बड़ी पार्टियों में
जिसमें
साहित्य के अलावा सबकुछ रहता है
नहीं
लगा पाता मस्का किसी मसखरे लेखक को
उसकी
अनाप-शनाप और लिजलिजी रचनाओं पर
नहीं
कर पाता तारीफ किसी लिपी-पुती लेखिका की
औचित्यहीन
कविताओं का
चाह
कर भी नहीं बज पाती है मेरी ताली
किसी
नामचीन लेखक की हलकी रचनाओं पर
अच्छा
नहीं लगता मुझे अक्सर
खाए-अघाए
बूढ़े लेखकों को
किसी
नवयुवती लेखिका की खुशामद करते हुए
अपनी
उम्र का भी ख्याल न करके लार टपकाते देखकर
(कृष्णधर शर्मा 12.9.2022)
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