नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

रविवार, 27 अगस्त 2023

दुर्गा और लक्ष्मी

 साप्ताहिक बाजार से शराब पीकर लौटते हुए

रास्ते में कहीं पर भी गिर जाता है उसका पति

एक हाथ से दुधमुंहे बच्चे को, और

दूसरे हाथ में सब्जी-भाजी का थैला पकडे हुए

वह समझ नहीं पाती है कि

अपने गिरे हुए पति को अब

किस हाथ से उठाये और घर तक पहुंचाए

अपने घर-परिवार में औरतों को दुर्गा और लक्ष्मी

मानने की कहानियां सुनकर बड़ी हुई

बचपन से ही सुनहरे भविष्य के सपने देखती

आज इस मोड पर अपने को अकेला पाकर

रोना भी आता है उसको यह सब देखकर

मगर खुद रोये या रोते बच्चे को चुप कराये

बहुत ही बेबस और लाचार पाती है वह अपने को

इन बहुत ही कठिन परिस्थितियों के बीच में...

              कृष्णधर शर्मा  27.8.23


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शनिवार, 12 अगस्त 2023

बम-बारूद और इंसान

 बम-बारूद बनवाने वाले

बम-बारूद बनाने वाले

बम-बारूद बेचने वाले

बम-बारूद खरीदने वाले

बम-बारूद का इस्तेमाल करने वाले

यह सब लोग इंसान होते होते हैं

हाँ, मगर बम विस्फोट में मरने वाले

शायद इंसान नहीं होते

वः तो होते हैं कीड़े-मकोड़े जैसे

जिनकी किसिस को जरुरत नहीं होती

इसलिए तो उन्हें चुना जाता है इंसानों द्वारा

अपने बम-बारूद का उपयोग करने के लिए...

             कृष्णधर शर्मा  12.8.23

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गुरुवार, 3 अगस्त 2023

वयं रक्षाम- आचार्य चतुरसेन

 खूब घने काले बाल, चमकती हुई काली आंखें, एक निराला-सा व्यक्तित्व, गहन अहम्मन्यता से भरपूर । रानी के समान गरिमा, पिघलते हुए स्वर्ण-सा रंग, आदर्श सुन्दरी न होने पर भी भव्य आकर्षण से ओतप्रोत आंखों में झांकती हुई स्थिर दृढ़ संकल्प-प्रतिमा, कटाक्ष में तैरती हुई तीखी प्रतिभा और उत्फुल्ल होठों में विलास करती हुई दुर्दम्य लालसा - यह सूर्पनखा का व्यक्तित्व था । प्रतिक्रिया के लिए सदैव उद्यत और अपने ही पर निर्भर। लम्बी, तन्वंगी, सतर और अचंचल ।

 उसका असली नाम था 'वज्रमणि', परन्तु नाखून उसके बड़े और चौड़े सूर्प की भांति थे, इससे बचपन ही में विनोद और प्यार से भाई उसे चिढ़ाते हुए सूर्पनखा कहते थे और अब उसका यही नाम प्रसिद्ध था। इस नाम से वह बचपन में चिढ़ती थी, परन्तु अब नहीं। वह परन्तप रावण और दुर्धर्ष कुम्भकर्ण की अकेली बहन थी, प्यार और दुलार के वातावरण में पली हुई। प्रथम रक्षकुल, दूसरे राजकुल, तीसरे प्रतापी भाइयों की प्रिय इकलौती बहन, चौथे निराला अहं-स्वभाव, पांचवें स्वच्छन्द जीवन, सबने मिलकर उसे एक असाधारण - कहना चाहिए, लोकोत्तर- बालिका बना दिया था।

 राक्षसेन्द्र रावण के सामने आकर उसने शालीनता से कहा- "जयतु देवः ! जयत्वार्यः !” “अये स्वसा! अपि कुशलं ते?" "प्रीतास्मि । किम् रक्षेन्द्र !" “भद्रं ते पश्यामि भगिनि !” “मेरे लिए रक्षेन्द्र का कुछ आदेश है?" "तेरे ही कल्याण के लिए। तू रक्षेन्द्र की प्राणाधिका इकलौती बहन है।" "कुछ विशेष बात है?" "हां बहन, तुझसे महिषी मन्दोदरी ने कुछ कहा है?" “यही कि रक्षेन्द्र मुझे देखना चाहते हैं।" "तो बैठ बहन, तुझसे मैं कुछ बात करूंगा।" (वयं रक्षाम- आचार्य चतुरसेन)




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