स्थानांतरण मात्र स्थानांतरण नहीं होता है
वह तो होता है एक तरह का विस्थापन
सालों की जमी-जमाई गृहस्थी को
एक झटके में समेट कर अचानक से
चल देना होता है एक नई जगह के लिए
बिना कुछ सोचे-समझे देखे-भाले
अपनी जान-पहचान अपना कमाया सम्मान
सब वहीँ छोड़ कर बढ़ जाना होता है
एक अनजान दिशा में
जहाँ पर होता है सब कुछ नया-नया
अपरिचित, अनजान सा
जहाँ पर शुरू करना पड़ता है
सब कुछ शुरू से, नए सिरे से
जहाँ बनाने पड़ते हैं सारे रिश्ते नए
चाहे वह पड़ोसी हों या दूधवाला
या फिर सब्जी बेचनेवाला ही हो
मिटानी पड़ती हैं कुछ पुरानी यादें
नए रिश्तों को जगह देने के लिए...
#साहित्य_की_सोहबत #पढ़ेंगे_तो_सीखेंगे
#हिंदीसाहित्य #साहित्य #कृष्णधरशर्मा
Samajkibaat समाज
की बात
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें