"बिन्दो समझ गई कि उसी का गिला हो रहा था। सामने आकर वह बोली, 'अरे कहो न, रुक क्यों गई?'
डर के मारे जैसे कदम की जीभ लटपटा गई। वह बोली, 'नहीं बहू, यह समझो कि-बड़ी जीजी ने कहा था सो मैंने कहा-क्या नाम से-कि-कि।'
'सब जानती हूँ। चल भाई तू! जाकर अपना काम देख!' कदम तो जान छुड़ाकर भागी। तब बिन्दो ने अन्नपूर्णा को लक्ष्य करके व्यंग्य किया, 'मालकिन के सलाहकार भी खूब हैं। जेठ जी से कहकर इनकी तनख्वाह की तरक्की करा देनी चाहिए।'
बिन्दो प्रसन्न रहती है तो अन्नपूर्णा को जीजी कहती है और नाराज होने पर, मालकिन।
अन्नपूर्णा भी कुढ़ गई। बोली, 'जा-जा कह दे। तेरे जेठ जी मेरा सिर कटवा देंगे न।
तेरे जेठ जी भी कम नहीं हैं। देखते ही शुरू हो जाएंगे-'क्या है बहूरानी, ठीक कहती हो, ठीक बात है।' मैंने भी तेरी जैसी तकदीर वाली कभी नहीं देखी। क्या भाग्य है, छोटी होकर घर पर राज करती है।'
अन्नपूर्णा की बात पर बिन्दो को हंसी आ गई बोली, लेकिन तुम कहां डरती हो?'
'तेरी रणचण्डी की मूर्ति देखकर किसकी छाती का खून पानी न हो जाय। पर इतना गुस्सेल मिजाज अच्छा नहीं बहू। और अब तू कोई बच्ची नहीं। अगर बच्चे होते तो चार-पांच की मां होती। लेकिन तेरा भला क्या दोष! दोष तो उस बूढ़े का है जो तुम्हें लाड़-प्यार करके बिगाड़ दिया है।'
'तकदीर लेकर तो जरूर पैदा हुई हूं जीजी। धन, दौलत, लाड़, प्यार तो बहुतों को मिलता है, इसमें कुछ खास नहीं। लेकिन ऐसा देवता-सा जेठ पाना तो कई-कई जन्म की तपस्या का ही फल है। मेरे भाग्य से डाह मत करो जीजी। मगर उनके लाड़ ने मेरा सिर नहीं फिराया। तुम्हारे लाड़ ने मेरा सिर फिराया है। समझीं।" (बिन्दो का लड़का- शरतचन्द्र)
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