नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

गुरुवार, 31 अक्टूबर 2024

यही तो है दिवाली

जब घर हो साफ-सुथरा

और मन भी हो निर्मल

स्वच्छता हो चारों ओर

हवा भी हो शीतल

अपना भी घर जगमग हो

दूसरों के घर भी अंधेरा न रहे

हम भी मुस्कुराएं और

दूसरों को भी मुस्कुराने दें

अपने अलावा भी किसी

और का घर जगमगाने दें

हम भी खाएं और दूसरों का

पेट भी न रहे खाली

यही तो त्योहारों का आनंद है

यही तो है दिवाली 

               कृष्णधर शर्मा 31.10.24

मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024

हर बात का बदला नहीं लिया जाता

 

यकीन मानिए जनाब मेरा आप

मजा माफ़ करने में भी बहुत आता है

कुछ गुनाहों की सजा छोड़ी भी जाती है

हर बात का बदला नहीं लिया जाता

                    कृष्णधर शर्मा 14.10.24

गुरुवार, 10 अक्टूबर 2024

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा,

हम बुलबुलें हैं इसकी यह गुलसिताँ हमारा.!!


ग़ुर्बत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में,

समझो वहीं हमें भी दिल हो जहाँ हमारा.!!


परबत वह सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का,

वह संतरी हमारा, वह पासबाँ हमारा.!!


गोदी में खेलती हैं इसकी हज़ारों नदियाँ,

गुलशन है जिनके दम से रश्क-ए-जनाँ हमारा.!!


ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा! वह दिन हैं याद तुझको,

उतरा तिरे किनारे जब कारवाँ हमारा.!!


मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना,

हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोसिताँ हमारा.!!


यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा सब मिट गए जहाँ से,

अब तक मगर है बाक़ी नाम-ओ-निशाँ हमारा.!!


कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,

सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा.!!


‘इक़्बाल’ कोई महरम अपना नहीं जहाँ में,

मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहाँ हमारा.!!


  मोहम्मद इकबाल

शनिवार, 5 अक्टूबर 2024

लिखना बाकी है

सिद्धांत और वैचारिकता पर

लाखों कविताएं लिखकर

जब हम कवि बना चुके होंगे

एक नैतिक और बौद्धिक संसार

जहां पर नहीं होगा किसी भी तरह का

कोई भी गलत या अनैतिक काम

सब लोग रहेंगे अपनी मर्यादा में

जिओ और जीने दो के सिद्धांत

का विधिवत पालन करते हुए

आ चुका होगा जब रामराज्य

देश और दुनिया के हर कोने में

तब एक अजीब सी उदासी

छा चुकी होगी कवियों के जीवन में

कि अब क्या लिखें हम!

अब क्यों लिखें हम!

जबकि हमारे लिखने का

पूरा हो चुका है उद्देश्य

इसी चिंता और कशमकश में

पसीने से तरबतर उमस भरी रात में

बेचैनी से करवट बदलते हुए

अचानक गिर पड़ता है कवि

अपनी चारपाई से नीचे और

खुल जाती है अचानक से उसकी नींद

अचानक हुए इस घटनाक्रम से उबरकर

जब समझता है कवि

कि देख रहा होता है सपना

वह मानवता की भलाई के

तब वह लेता है छैन की सांस

कि चलो अभी तो बहुत सारी

कविताएं लिखना बाकी ही है न!

               कृष्णधर शर्मा 5.10.24