नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शुक्रवार, 12 सितंबर 2025

बैंक का लोन

 बैंक ने मेरा लोन पास कर दिया है

किसान ने जब घर पहुंचकर यह खुशखबरी सबको सुनाई तो सब घरवाले ख़ुशी से झूम उठे. पिछले वर्ष सूखे की मार से फसल ख़राब हो गई थी जिससे किसान की सारी अर्थव्यवस्था चौपट हो गई थी. खाने तक के लिए अनाज कम पड़ गया था फिर बेचने की बात कौन करे. यहाँ तक कि अगले वर्ष की खेती के लिए वह बीज भी बचाकर नहीं रख पाया था. मानसून नजदीक था मगर खेत के पेपर गिरवी रखने की बात पर भी बैंकवाले लोन देने के लिए आना-कानी कर रहे थे तभी किसान के एक रिश्तेदार ने समझाया अरे लोन ऐसे ही नहीं मिल जायेगा. बैंकवाले बाबू को खुश करोगे तब जाकर तुम्हारा लोन पास होगा.

किसान बहुत ही सीधा-सादा और सज्जन आदमी था. वह बड़े ही भोलेपन से रिश्तेदार का मुंह देखने लगा तो रिश्तेदार ने कहा अरे भाई उसे कुछ रुपया देना पड़ेगा, रिश्वत खिलानी पड़ेगी समझे क्या!

पहले तो किसान ने रिश्तेदार की बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया मगर जब मानसून की आहट सुनाई पड़ने लगी तो वह बेचैन हो उठा और अपनी औरत के पास जाकर बोला “अब क्या करें! बरसात भी समझो आ ही गई है और अभी तक खाद-बीज का कोई इंतजाम नहीं हो पाया है. बैंकवाला बाबू बिना कुछ लिए-दिए लोन नहीं पास करेगा.”

किसान की औरत ने अपने गले में पहना मंगलसूत्र निकालकर देते हुए कहा “इसे ले जाओ और कहीं गिरवी रखकर उस बाबू को रुपया दो ताकि लोन के रूपये से हमारी भरभराती हुई गृहस्थी को सम्हाला जा सके. अच्छी खेती होने के बाद हम बैंक का लोन भी जमा कर सकेंगे और मेरा मंगलसूत्र भी वापस आ जायेगा.”

किसान के दो बच्चे थे. बड़ी बेटी थी जिसका विवाह वह पांच साल पहले ही ग्राम प्रधान से कर्ज लेकर पड़ोस के ही गाँव में कर चुका था और पिछले वर्ष ही कर्जमुक्त हुआ था उससे  छोटा बेटा था जो बारहवीं फेल होकर दो साल से घर पर ही बैठा था मगर उसके सपने बड़े-बड़े थे. वह गाँव की ही एक लड़की से शादी करना चाहता था मगर लड़की उससे संपन्न घर की होने की वजह से और बारहवीं में फेल होकर घर में खाली बैठे रहने की कारण उससे कतराती थी. एक बार मेले में मिलने पर उसने अपनी सहेलियों के सामने लड़के से कह भी दिया था कि “शादी तो मैं तुमसे कर भी लूं मगर न तो तुम्हारे पास पक्का मकान है न घर में टीवी है और बाजार घूमने क्या मैं तुम्हारे साथ साईकल में जाऊँगी! अरे पहले इन सबका इंतजाम कर लो फिर शादी के बारे में सोचना.’’

  बदलते समय के साथ किसान के बेटे को भी आधुनिक ज़माने के साथ कदमताल करने का मन होता था मगर घरेलू अभाव व् परेशानियाँ उसके सपनों के आड़े आ जाते थे. माँ के डांटने-कहने पर बेमन से कभी-कभार पिता का छोटे-मोटे कामों में हाथ बंटाता था मगर उसका मन भटकता ही रहता था.

 आख़िरकार किसान ने बेमन से अपनी पत्नी का मंगलसूत्र गिरवी रखकर बैंक के बाबू को पांच हजार रूपये की रिश्वत दी तब जाकर उसका पचास हजार का लोन पास हुआ.

किसान ने लोन के रूपये से खेत की बढ़िया से जुताई करवाई और बाजार से बढ़िया खाद-बीज लाकर बुवाई कर दी. इस सबके बाद लोन के कुछ रूपये बच जाने से वह पत्नी का मंगलसूत्र छुड़वाना चाहता था मगर घर में भी राशन-पानी के लिए कोई व्यवस्था न थी अतः किसान की पत्नी ने ही रास्ता निकाला कि अभी कुछ दिन तक मंगलसूत्र और गिरवी रहने दो. फसल कटाई के बाद उसे ब्याज सहित रूपये देकर मुक्त करवा लेना. अब किसान को अगले 2-3 महीने राशन-पानी की भी कोई चिंता न थी और निराई-गोड़ाई, जंगली जानवरों से फसल की रखवाली करते कब फसल काटने का समय आया किसान को पता न चला. इस साल पूरे राज्य में सबकी फसल अच्छी हुई थी.   

किसान भी अपने खलिहान में अनाज का ढेर देखकर बहुत खुश था कि अब वह बैंक का लोन चुकाकर और अपनी पत्नी का मंगलसूत्र भी महाजन के यहाँ से छुडवा लेगा.

किसान ने खलिहान से सबसे पहले अगले साल की खेती के लिए बीज निकाला फिर सालभर के खाने के लिए अनाज अलग किया और बाकी अनाज गाँव के ही प्रधान के ट्रैक्टर में लोड करवाकर अन्य कई किसानों के साथ सहकारी समिति की तरफ निकल पड़ा. इस साल बम्पर पैदावार होने की वजह से फसल बेचने के लिए समितियों में ट्रैक्टरों की लम्बी कतार लगी थी. तीसरे दिन किसान का भी नंबर आया तो उसने भी अपनी फसल समिति के कांटे पर तुलवाई. उसकी फसल का दाम कुल मिलाकर पचपन हजार रूपये हुआ था. किसान ने हिसाब लगाया कि इससे वह बैंक का लोन भी दे सकेगा और पत्नी का मंगलसूत्र भी छुडवा सकेगा. अपनी फसल की कमाई लेकर वह शाम होते-होते घर पहुंचा और गमछे से पसीना पोछते हुए पत्नी से पानी माँगा. पत्नी भी उसकी आवाज सुनकर पानी लिए हुए आँगन में भागी चली आई. किसान का बेटा भी पिता को घर आते देख खेल के मैदान से भागता हुआ घर आ पहुंचा. किसान ने फसल बेचकर लाई हुई रकम सबके सामने रख दी और कहा कि “चलो फसल की कीमत ज्यादा तो नहीं मिली मगर बैंक का लोन जमा कर दूंगा तो एक बड़ी चिंता से मुक्ति मिल जाएगी. बाकी व्यवस्थाएं अगली फसल में देखी जायेंगी.”

इधर किसान और उसकी पत्नी कर्जमुक्त हो जाने की संभावना से राहत महसूस कर रहे थे उधर किसान के बेटे के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था. वह महीनों से प्लानिंग करके बैठा था अब उसे मूर्त रूप देने का समय आ चुका था. उसने पिता से कहा “पिताजी मैंने पिछले महीने गन्ना मिल में नौकरी के लिए आवेदन दिया था तो वहां मेरी सुपरवाईजर (मुंशी) की नौकरी पक्की हो गई है मगर रोज 6-7 किलोमीटर आने-जाने में काफी समय बर्बाद होगा और कई बार मैं समय से पहुँच भी नहीं पाउँगा! तो मैं सोच रहा था क्यों न मैं इस रूपये की एक मोटरसाईकिल ले लूँ! बैंक का कर्ज मैं अपनी तनख्वाह से चुका दूंगा!

“मगर मुंशी की नौकरी में तुम्हें तनख्वाह ही कितनी मिलेगी बेटा कि तुम कर्ज चुका पाओगे!’

पिता के चेहरे पर उभरे परेशानी के भाव को देखते हुए बेटे ने कहा “पिताजी, वहां पर तनख्वाह के अलावा उपरी कमाई भी हो जाती है. अतः कर्ज चुकाने में कोई परेशानी नही आएगी. अब पिताजी को तुम ही समझाओ न माँ!”  

पहले तो माँ भी पशोपेश में पड़ गई मगर बेटे के दबाव बनाने पर उसने भी कहा “अब इतना कह रहा है तो दे दीजिये न रूपये! आपको कर्ज चुकाने की चिंता नहीं करनी पड़ेगी. फिर हमारे बेटे ने इतने दिनों के बाद नौकरी करने की बात कही है जिससे हमें भी खुश होना चाहिए और उसका सहयोग करना चाहिए.”

किसान माँ-बेटे की बातें सुनकर अब मना न कर पाया और रूपये बेटे के हाथों में सौपते हुए बोला “यह लो बेटा रूपये, मन लगाकर काम करना. हमें इसी महीने से बैंक का लोन चुकाने के लिए बचत भी करनी होगी. हाँ एक बात और है बेटा! ऐसा कुछ भी मत करना जिससे हमारी सामजिक प्रतिष्ठा पर कोई आंच आये.”

“आप बिलकुल भी चिंता न करें पिताजी! मैं भी अब समझदार हो गया हूँ और अपनी जिम्मेवारी समझता हूँ.”

“ठीक है बेटा जैसा तुमको उचित लगे”

बेटे ने रूपये मिलते ही अगले दिन एक पुरानी मोटरसाइकिल और एक टीवी खरीद ली. माँ-बाप ने जब टीवी खरीदने पर आपत्ति जताई तो बेटे ने कहा “माँ! आजकल जमाना बदल रहा है और हमें भी नए ज़माने के हिसाब से चलना होगा नहीं तो हम पीछे रहा जायेंगे. जरा सोचो तो टीवी पर इतने अच्छे कार्यक्रम आते हैं, धार्मिक सीरियल और क्रिकेट का खेल भी आता है. पहले जब मैं किसी और के घर टीवी देखने जाता था तो कई बार मुझे अपमानित होना पड़ता था अब हम सब अपने कामों से फुर्सत होकर साथ बैठकर टीवी देख पाएंगे तो कितना अच्चा महसूस होगा न! और फिर पड़ोसियों और गांववालों में भी हमारी कितनी इज्जत बढ़ेगी न!”

माँ-बाप इस बार भी बेटे के तर्कों के आगे निरुत्तर रह गए. अब बेटा मोटरसाइकिल लेकर लड़की के घर की तरफ निकला जहाँ घर के सामने बने चबूतरे पर ही लड़की एक सहेली से बातें करते हुए दिख गई. लड़के ने आगे-पीछे देखकर मोटरसाइकिल रोकी और लड़की को मोटरसाइकिल और नई टीवी खरीदने के बारे में बताया. मगर लड़की के चेहरे पर ख़ुशी के भाव न देखकर लड़का घबराया और उससे पूछा “तुम खुश नहीं हो क्या! अब तो हमारी शादी में कोई अड़चन नहीं आनी चाहिए न!” लड़की ने थोडा कठोर नजरों से देखते हुए कहा “तुम्हारे टीवी और मोटरसाइकिल खरीद लेने से हमारी शादी नहीं हो जाने वाली! मुझे अपने खंडहर जैसे दिखनेवाले मिटटी के कच्चे मकान में रखोगे क्या जिसमें कूलर तक नहीं है! और तुम ठहरे बेरोजगार और निठल्ले आदमी! मेरी जरूरतें और खर्च कैसे पूरा करोगे! जाओ पहले इस सबके बारे में सोचो फिर शादी की सोचना!” कहकर लड़की अपनी सहेली के साथ बातें करने लगी. लड़के को यह सब सुनकर बहुत दुःख हुआ और वह घर आकर टीवी चलाकर बिस्तर पर पड़ गया.

  जब कई दिनों तक बेटा दिनभर सिर्फ टीवी देखकर और सुबह-शाम मोटरसाइकिल लेकर घूमता रहा तो माँ-बाप का माथा ठनका और उन्होंने बेटे से कहा कि “बेटा! तुम 3-4 दिन से घर पर ही बैठे हो! नौकरी करने क्यों नहीं जा रहे हो?”

बेटे की भी अचानक जैसे नींद खुली हो. वह थोडा सिटपिटाया मगर बातें बनाते हुए बोला “अरे! आप लोग तो बेकार ही सोचकर परेशान हो रहे हैं मुझे दो दिन के बाद परसों के दिन  नौकरी पर आने को कहा गया है इसलिए मैं कहीं न जाकर घर पर ही आराम कर रहा था”

बेटे की बातें सुनकर माँ-बाप को कुछ तसल्ली हुई. लड़के ने भी सोचा कि अब टालमटोल करने से काम नहीं चलेगा. मुझे कुछ काम करना ही पड़ेगा तभी घर-गृहस्थी भी चलेगी और कुछ कमाकर पक्का घर बनाऊंगा तब जाकर मेरी शादी की बात भी बनेगी.

लड़का चिंतित होकर अगले दिन सचमुच काम की तलाश में गन्नामिल के दफ्तर पहुंच गया और वहां के मैनेजर से अपनी नौकरी के लिए निवेदन किया मगर मैनेजर ने उसे साफ़ जवाब दे दिया कि अभी तो वैसे भी हमारे यहाँ आदमी ज्यादा हैं. हमें अभी नए आदमी की कोई जरूरत नहीं है.”  लड़का वहां से निराश होकर और कई जगह काम की तलाश में गया मगर उसे कोई काम नही मिला. अगले दो-तीन दिनों तक कोई व्यवस्था नहीं हो पाने की वजह से उसका आत्मविश्वास चकनाचूर हो चुका था और वह मानसिक रूप से काफी तनावग्रस्त हो गया. अब वह अक्सर घर पर ही अपनी कोठारी में मुंह छुपाकर पड़ा रहता था. माँ-बाप को जब उसकी सच्चाई का पता चला तो उनके पैरों के नीचे से मानों धरती ही खिसक गई. पिता को तो जैसे सदमा सा लगा. वह अब अक्सर अपने खेत पर जाकर बैठे रहते और चुपचाप ही रहते. एक दिन बैंक से लोन वसूली का नोटिस आया जिसे देखकर वह काफी घबरा गया. नोटिस लाने वाले ने उसे बताया कि अगर तुमने जल्दी ही बैंक का लोन ब्याज सहित नहीं चुकाया तो तुम्हारे घर और खेत कुर्क कर लिए जायेंगे. किसान की आँखों के आगे अँधेरा सा छाने लगा और वह अपना सर पकड़कर बैठ गया.  शाम को उसने खाना भी नहीं खाया और अनमना सा अपने खेतों की तरफ निकल गया.

रात काफी हो जाने पर भी जब किसान घर नहीं लौटा तो उसकी पत्नी काफी परेशान हो गई और बेटे को बोली “बेटा! देख तो तेरे पिताजी कहाँ हैं! अभी तक घर नहीं आये, उन्होंने आज खाना भी नहीं खाया है और बिना कुछ कहे कहाँ चले गए हैं!”

बेटा इस समय अवसादग्रस्त होकर रात में खाना खाने के बाद नशीली दवाओं का सेवन करने लगा था. वह इस समय भी नशीली दवाओं का सेवन करके अपने कमरे में पड़ा हुआ था. उसने माँ की बातें तो सुनी मगर उसे कुछ खास समझ में नहीं आया. माँ ने काफी देर तक बेटे को उठाना चाहा मगर बेटे की हालत उस समय ऐसी थी कि वह उठकर कुछ दूर भी स्वयं नहीं चल पा रहा था. थककर वह खुद ही किसान को ढूँढने निकल पड़ी. आस-पड़ोस में कई लोगों से पूछने पर पता चला कि किसान को खेतों की तरफ जाते देखा गया था. चांदनी रात के हलके उजाले का सहारा लिए वह खेत की तरफ चल पड़ी. खेत पहुंचकर उसने इधर-उधर नजर दौड़ाई और किसान को आवाज भी लगे मगर कहीं से कोई जवाब न आया. उसने भी आज उपवास रखने के कारण सुबह से कुछ नहीं खाया था और शाम को किसान के बिना बताये कहीं चले जाने की वजह से वह शाम को भी कुछ नहीं खा पाई. दिनभर की कमजोरी थकान और किसान की चिंता से बेहाल ही थी कि अचानक उसे पास के पेड़ पर कुछ लटकता हुआ सा दिखा. वह घबराकर पेड़ के पास पहुंची तो देखा कि किसान अपने गमछे का फंदा बनाकर पेड़ पर निर्जीव होकर लटक रहा था यह सब देखकर वह बेहोश होकर धम्म से खेत की मेड पर गिर पड़ी. अगली सुबह जब कई लोगों ने घर आकर बेटे को जगाया और उसे लेकर खेत पहुंचे तो बेटे ने देखा कि पिता पेड़ पर लटके हुए हैं और माँ जमीन पर निर्जीव पड़ी हुई है. उसकी आँखों में न आंसू आये और न ही उसने किसी से कुछ कहा. पथरायी आँखों से कभी पिता और कभी माँ को देखता वह भी खेत की मेड पर पड़े माँ के निर्जीव शरीर के पास बैठ गया.   कृष्णधरशर्मा


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Samajkibaat समाज की बात      

मंगलवार, 9 सितंबर 2025

ओ बादल आते रहना

ओ बादल आते रहना हमेशा मेरे आंगन में

कभी सूरज के साथ आना तो कभी चन्दा के साथ

तुम आते हो तो जीवन में उमंग बनी रहती है

जीवन जीने की इच्छा मन में बची रहती है

ओ बादल तुम आते हो तो आते हैं तुम्हारे साथ

तुम्हारे ही भीतर छुपे हुए कई कई लोग

मैं देखता हूँ उनमें अपने जाने-पहचाने चेहरे

जो मिले होते हैं जीवन में किसी मोड़ पर कभी

फिर होती है आँख-मिचौली उनके साथ

बहुत अच्छा लगता है तुम्हारा आना

जैसे किसी प्रेमिका का आना

और मेरे सर को अपने गोद में रखकर

हौले-हौले से बालों को सहलाना

मेरे अन्दर बची हैं बहुत सारी बातें

जो करनी हैं तुमसे एक दिन खुलकर

एक तुम्ही तो हो मेरी उस प्रेमिका के बाद

जिससे की जा सकती हैं दुनिया जहान की

ढेर सारी बातें तुम्हारी गोद में सिर रखकर

कई-कई घंटे, दिन, महीने और सालों तक

जब तक ख़त्म न हो जाएँ सारी बातें

रीत न जाए मेरे मन में

भरी हुई बातों का खजाना...

      कृष्णधर शर्मा 8.9.25

दंगों के घाव

दंगों में कभी नहीं मारे जाते दंगाई

दंगों में मरते हैं हमेशा ही

बेकसूर और कमजोर लोग

जिन्हें शायद अपनी गलती भी

ठीक से नहीं होती पता

बुरे लोगों की बुराई की कीमत

हमेशा अच्छे लोग ही चुकाते हैं

दंगे करके निकल जाते हैं दंगाई

छोड़ जाते हैं अपने पीछे

कभी न भरने वाले घाव

जो रह-रहकर रिसते रहते हैं

जीवन भर किसी नासूर की तरह

          कृष्णधर शर्मा 8.9.25

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