नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शनिवार, 20 सितंबर 2025

अपने सुनहरे सपने

 कुर्बान कर देता है एक बाप 

अपने जीवन के सबसे शानदार दिन 

और अपने सुनहरे सपने भी 

अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए 

एक कर देता है वह दिन और रात 

लगा देता है अपना पूरा दम और ख़म 

कि अपने बच्चों को दे सकूँ वह सब सुविधाएं 

जिसके लिए कभी तरसता था मैं मन ही मन 

किसी दिन बाजार से गुजरते हुए अचानक 

हलवाई की दुकान देखकर 

वह टटोलता है अपनी जेब 

और ज्यादा गुंजाईश न होते हुए भी 

खरीद ही लेता है एक पाव जलेबी 

और कुछ समोसे भी चटनियों के साथ 

फिर कुछ गुनगुनाते हुए 

बढ़ जाता है अपने घर की ओर

जहाँ इन्तजार कर रहे होते हैं  कुछ अपने लोग 

खुश होते हैं बाप के हाथ में जलेबी और समोसा देखकर 

बच्चे भी और उनकी माँ भी जरा सा मुस्कुरा देती है 

सबको खुश देखकर खुश होता है वह भी 

अपनी इस छोटी सी सफलता पर 

हालंकि उसे पता होता है कि यह तो बहुत ही 

छोटी सी सफलता है जीवन की कठिन राह पर 

अभी तो सामने आएंगी पहाड़ सी चुनौतियाँ 

जिनके बारे में सोचकर काँप जाता है उसका मन 

मगर भविष्य की उन चुनौतियों से अपने बच्चों को 

बचाने के लिए ही तो करता है वह हाड़तोड़ मेहनत 

कई बार खूब थके होने के बाद भी 

ठीक से सो नहीं पाता वह कई-कई रातें 

इसी चिंता में कि अगर खरा न उतर पाया वह  

अपने बच्चों की उम्मीदों पर तो फिर क्या होगा...

                                            कृष्णधर शर्मा  19/9/2025 


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