देश और दुनिया की राजनीतिक क्षितिज पर ध्रुव तारे की तरह अटल एक सितारा कोई है तो वह है हमारे अपने तथा देश के लाडले नेता माननीय अटलबिहारी वाजपेयी . वे देश के सर्वाधिक लोकप्रिय एवं सर्वमान्य नेता है . एक ऐसे उदार नेता जिनकी कथनी और करनी में कभी अंतर नहीं रहा . वे देश के एक मात्र नेता है जो भाषण के जरिये लाखों लोंगों को घंटो तक बाँधें रखने की क्षमता रखते है . ह्रदय से अत्यंत ही भावुक लेकिन तेजस्वी नेता माननीय अटलबिहारी वाजपेयी का आज 87 वां जन्म दिन है . श्री वाजपेयी का जन्म 25 दिसम्बर, 1924 को ग्वालियर (मध्यप्रदेश) में हुआ था. इनके पिता का नाम श्री कृष्ण बिहारी वाजपेयी और माता का नाम श्रीमती कृष्णा देवी है.श्री वाजपेयी के पास 40 वर्षों से अधिक का एक लम्बा संसदीय अनुभव है. वे 1957 से सांसद रहे हैं. वे पांचवी, छठी और सातवीं लोकसभा तथा फिर दसवीं, ग्यारहवीं, बारहवीं , तेरहवीं और चौदहवीं लोकसभा के लिए चुने गए और सन् 1962 तथा 1986 में राज्यसभा के सदस्य रहे.वे लखनऊ (उत्तरप्रदेश) से लगातार पांच बार लोकसभा सांसद चुने गए. वे ऐसे अकेले सांसद हैं जो अलग-अलग समय पर चार विभिन्न राज्यों-उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश तथा दिल्ली से निर्वाचित हुए हैं.
श्री अटल बिहारी वाजपेयी 16 से 31 मई, 1996 और दूसरी बार 19 मार्च, 1998 से 13 मई, 2004 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे. प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने के साथ पंडित जवाहरलाल नेहरू के बाद वे ऐसे अकेले प्रधानमंत्री रहे हैं जिन्होंने लगातार तीन जनादेशों के जरिए भारत के प्रधानमंत्री पद को सुशोभित किया. श्री वाजपेयी, श्रीमती इन्दिरा गांधी के बाद ऐसे पहले प्रधानमंत्री रहे हैं जिन्होंने निरन्तर चुनावों में विजय दिलाने के लिए अपनी पार्टी का नेतृत्व किया.
वे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन जो देश के विभिन्न क्षेत्रों की विभिन्न पार्टियों का एक चुनाव-पूर्व गठबन्धन है और जिसे तेरहवीं लोकसभा के निर्वाचित सदस्यों का पूर्ण समर्थन और सहयोग हासिल है, के नेता चुने गए. श्री वाजपेयी भाजपा संसदीय पार्टी जो बारहवीं लोकसभा की तरह तेरहवीं लोकसभा में भी अकेली सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है, के निर्वाचित नेता रहे हैं.
उन्होंने विक्टोरिया (अब लक्ष्मीबाई) कॉलेज, ग्वालियर और डी.ए.वी. कॉलेज, कानपुर (उत्तरप्रदेश) से शिक्षा प्राप्त की. श्री वाजपेयी ने एम.ए. (राजनीति विज्ञान) की डिग्री हासिल की है तथा उन्होंने अनेक साहित्यिक, कलात्मक और वैज्ञानिक उपलब्धियां अर्जित की हैं. उन्होंने राष्ट्रधर्म (हिन्दी मासिक), पांचजन्य (हिन्दी साप्ताहिक) और स्वदेश तथा वीर अर्जुन दैनिक समाचार-पत्रों का संपादन किया. उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं–”मेरी संसदीय यात्रा”(चार भागों में); ”मेरी इक्यावन कविताएं”; ”संकल्प काल”; ”शक्ति से शांति” और ”संसद में चार दशक” (तीन भागों में भाषण), 1957-95; ”लोकसभा में अटलजी” (भाषणों का एक संग्रह); ”मृत्यु या हत्या”; ”अमर बलिदान”; ”कैदी कविराज की कुंडलियां”(आपातकाल के दौरान जेल में लिखीं कविताओं का एक संग्रह); ”भारत की विदेश नीति के नये आयाम”(वर्ष 1977 से 1979 के दौरान विदेश मंत्री के रूप में दिए गए भाषणों का एक संग्रह); ”जनसंघ और मुसलमान”; ”संसद में तीन दशक”(हिन्दी) (संसद में दिए गए भाषण 1957-1992-तीन भाग); और ”अमर आग है” (कविताओं का संग्रह),1994.
श्री वाजपेयी ने विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में हिस्सा लिया है. वे सन् 1961 से राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य रहे हैं. वे कुछ अन्य संगठनों से भी सम्बध्द रहे हैं जैसे-(1) अध्यक्ष, ऑल इंडिया स्टेशन मास्टर्स एंड असिस्टेंट मास्टर्स एसोसिएशन (1965-70);(2) पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्मारक समिति (1968-84); (3) दीनदयाल धाम, फराह, मथुरा (उत्तर प्रदेश); और (4) जन्मभूमि स्मारक समिति, (1969 से) .
पूर्ववर्ती जनसंघ के संस्थापक-सदस्य (1951), अध्यक्ष, भारतीय जनसंघ (1968-73), जनसंघ संसदीय दल के नेता (1955-77) तथा जनता पार्टी के संस्थापक-सदस्य (1977-80), श्री वाजपेयी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष (1980-86) और भाजपा संसदीय दल के नेता (1980-1984,1986 तथा 1993-1996) रहे. वे ग्यारहवीं लोकसभा के पूरे कार्यकाल तक प्रतिपक्ष के नेता रहे. इससे पहले वे 24 मार्च 1977 से लेकर 28 जुलाई, 1979 तक मोरारजी देसाई सरकार में भारत के विदेश मंत्री रहे.
पंडित जवाहरलाल नेहरु की शैली के राजनेता के रुप में देश और विदेश में अत्यंत सम्मानित श्री वाजपेयी के प्रधानमंत्री के रुप में 1998-99 के कार्यकाल को ”साहस और दृढ़-विश्वास का एक वर्ष” के रुप में बताया गया है. इसी अवधि के दौरान भारत ने मई 1998 में पोखरण में कई सफल परमाणु परीक्षण करके चुनिन्दा राष्ट्रों के समूह में स्थान हासिल किया. फरवरी 1999 में पाकिस्तान की बस यात्रा का उपमहाद्वीप की बाकी समस्याओं के समाधान हेतु बातचीत के एक नये युग की शुरुआत करने के लिए व्यापक स्वागत हुआ। भारत की निष्ठा और ईमानदारी ने विश्व समुदाय पर गहरा प्रभाव डाला. बाद में जब मित्रता के इस प्रयास को कारगिल में विश्वासघात में बदल दिया गया, तो भारत भूमि से दुश्मनों को वापिस खदेड़ने में स्थिति को सफलतापूर्वक सम्भालने के लिए भी श्री वाजपेयी की सराहना हुई . श्री वाजपेयी के 1998-99 के कार्यकाल के दौरान ही वैश्विक मन्दी के बाबजूद भारत ने 5.8 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृध्दि दर हासिल की जो पिछले वर्ष से अधिक थी. इसी अवधि के दौरान उच्च कृषि उत्पादन और विदेशी मुद्रा भण्डार जनता की जरुरतों के अनुकूल अग्रगामी अर्थव्यवस्था की सूचक थी . ”हमें तेजी से विकास करना होगा। हमारे पास और कोई दूसरा विकल्प नहीं है ” वाजपेयीजी का नारा रहा है जिसमें विशेषकर गरीब ग्रामीण लोगों को आर्थिक रुप से मजबूत बनाने पर बल दिया गया है . ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने, सुदृढ़ आधारभूत-ढांचा तैयार करने और मानव विकास कार्यक्रमों को पुनर्जीवित करने हेतु उनकी सरकार द्वारा लिए गये साहसिक निर्णय ने भारत को 21वीं सदी में एक आर्थिक शक्ति बनाने के लिए अगली शताब्दी की चुनौतियों से निपटने हेतु एक मजबूत और आत्म-निर्भर राष्ट्र बनाने के प्रति उनकी सरकार की प्रतिबध्दता को प्रदर्शित किया . 52वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लालकिले की प्राचीर से बोलते हुए उन्होंने कहा था, ”मेरे पास भारत का एक सपना है: एक ऐसा भारत जो भूखमरी और भय से मुक्त हो, एक ऐसा भारत जो निरक्षरता और अभाव से मुक्त हो. ”
श्री वाजपेयी ने संसद की कई महत्वपूर्ण समितियों में कार्य किया है. वे सरकारी आश्वासन समिति के अध्यक्ष (1966-67); लोक लेखा समिति के अध्यक्ष (1967-70); सामान्य प्रयोजन समिति के सदस्य (1986); सदन समिति के सदस्य और कार्य-संचालन परामर्शदायी समिति, राज्य सभा के सदस्य (1988-90); याचिका समिति, राज्य सभा के अध्यक्ष (1990-91); लोक लेखा समिति, लोक सभा के अध्यक्ष (1991-93); विदेश मामलों की स्थायी समिति के अध्यक्ष (1993-96) रहे.
श्री वाजपेयी ने स्वतंत्रता संघर्ष में हिस्सा लिया और वे 1942 में जेल गये . उन्हें 1975-77 में आपातकाल के दौरान बन्दी बनाया गया था .
व्यापक यात्रा कर चुके श्री वाजपेयी अंतर्राष्ट्रीय मामलों, अनुसूचित जातियों के उत्थान, महिलाओं और बच्चों के कल्याण में गहरी रुचि लेते रहे हैं . उनकी कुछ विदेश यात्राओं में ये शामिल हैं- संसदीय सद्भावना मिशन के सदस्य के रुप में पूर्वी अफ्रीका की यात्रा, 1965; आस्ट्रेलिया के लिए संसदीय प्रतिनिधिमंडल 1967; यूरोपियन पार्लियामेंट, 1983; कनाडा 1987; कनाडा में हुई राष्ट्रमंडल संसदीय संघ की बैठकों में भाग लेने हेतु भारतीय प्रतिनिधिमंडल 1966 और 1984; जाम्बिया, 1980; इस्ले आफ मैन, 1984; अंतर-संसदीय संघ सम्मेलन, जापान में भाग लेने हेतु भारतीय प्रतिनिधिमंडल, 1974; श्रीलंका, 1975; स्वीट्जरलैंड 1984; संयुक्त राष्ट्र महासभा के लिए भारतीय प्रतिनिधिमंडल, 1988, 1990, 1991, 1992, 1993 और 1994; मानवाधिकार आयोग सम्मेलन, जेनेवा में भाग लेने हेतु भारतीय प्रतिनिधिमंडल के नेता, 1993.
श्री वाजपेयी को उनकी राष्ट्र की उत्कृष्ट सेवाओं के लिए वर्ष 1992 में पद्म विभूषण दिया गया. उन्हें 1994 में लोकमान्य तिलक पुरस्कार तथा सर्वोत्तम सांसद के लिए भारत रत्न ,पंडित गोविन्द बल्लभ पंत पुरस्कार भी प्रदान किया गया. इससे पहले, वर्ष 1993 में उन्हें कानपुर विश्वविद्यालय द्वारा फिलॉस्फी की मानद डाक्टरेट उपाधि प्रदान की गई.
श्री वाजपेयी काव्य के प्रति लगाव और वाक्पटुता के लिए जाने जाते हैं और उनका व्यापक सम्मान किया जाता है. श्री वाजपेयीजी पुस्तकें पढ़ने के बहुत शौकीन हैं। वे भारतीय संगीत और नृत्य में भी काफी रुचि लेते हैं.
वे निम्नलिखित पदों पर आसीन रहे :—
•1951 – भारतीय जनसंघ के संस्थापक-सदस्य (B.J.S)
•1957 – दूसरी लोकसभा के लिए निर्वाचित
•1957-77 – भारतीय जनसंघ संसदीय दल के नेता
•1962 – राज्यसभा के सदस्य
•1966-67 – सरकारी आश्वासन समिति के अध्यक्ष
•1967 – चौथी लोकसभा के लिए पुन: निर्वाचित (दूसरी बार)
•1967-70 – लोक लेखा समिति के अध्यक्ष
•1968-73 – भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष
•1971 – पांचवीं लोकसभा के लिए पुन: निर्वाचित (तीसरी बार)
•1977 – छठी लोकसभा के लिए पुन: निर्वाचित (चौथी बार)
•1977-79 – केन्द्रीय विदेश मंत्री
•1977-80 – जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य
•1980 – सातवीं लोकसभा के लिए पुन: निर्वाचित (पांचवीं बार)
•1980-86 – भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष
•1980-84, 1986 और 1993-96 – भाजपा संसदीय दल के नेता
•1986 – राज्यसभा के सदस्य; सामान्य प्रयोजन समिति के सदस्य
•1988-90 – आवास समिति के सदस्य; कार्य-संचालन सलाहकार समिति के सदस्य
•1990-91 – याचिका समिति के अध्यक्ष
•1991 – दसवीं लोकसभा के लिए पुन: निर्वाचित (छठी बार)
•1991-93 – लोकलेखा समिति के अध्यक्ष
•1993-96 – विदेश मामलों सम्बन्धी समिति के अध्यक्ष; लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता
•1996 – ग्यारहवीं लोकसभा के लिए पुन: निर्वाचित (सातवीं बार)
•16 मई 1996 – 31 मई 1996 तक – भारत के प्रधानमंत्री; विदेश मंत्री और इन मंत्रालयों/विभागों के प्रभारी .मंत्री-रसायन तथा उर्वरक; नागरिक आपूर्ति, उपभोक्ता मामले और .सार्वजनिक वितरण; कोयला; वाणिज्य; संचार; पर्यावरण और वन;.खाद्य प्रसंस्करण उद्योग; मानव संसाधन विकास; श्रम; खान; .गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोत; लोक शिकायत एवं पेंशन; पेट्रोलियम और .प्राकृतिक गैस; योजना तथा कार्यक्रम कार्यान्वयन; विद्युत; रेलवे,ग्रामीण क्षेत्र और रोजगार; विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी; इस्पात; भूतल परिवहन; कपड़ा; जल संसाधन; परमाणु ऊर्जा; इलेक्ट्रॉनिक्स; जम्मू व कश्मीर मामले; समुन्द्री विकास; अंतरिक्ष और किसी अन्य केबिनेट मंत्री को आबंटित न किए गए अन्य विषय।
•1996-97 – प्रतिपक्ष के नेता, लोकसभा
•1997-98 – अध्यक्ष, विदेश मामलों सम्बन्धी समिति
•1998 – बारहवीं लोकसभा के लिए पुन: निर्वाचित (आठवीं बार)
•1998-99 – भारत के प्रधानमंत्री; विदेश मंत्री; किसी मंत्री को विशिष्ट रूप से आबंटित न किए गए मंत्रालयों/विभागों का भी प्रभार
•1999 – तेरहवीं लोकसभा के लिए पुन: निर्वाचित (नौवीं बार)
•13 अक्तूबर 1999 से 13 मई 2004 तक- भारत के प्रधानमंत्री और किसी मंत्री को विशिष्ट रूप से .आबंटित न किए गए मंत्रालयों/विभागों का भी प्रभार
•2004 – चौदहवीं लोकसभा के लिए पुन: निर्वाचित (दसवीं बार)
इन दिनों वे काफी अस्वस्थ है,19-20 दिसंबर 2010 को मै दिल्ली में था, उनसे मिलने के लिए मैंने काफी हाथ पैर मारा लेकिन मुझे सफलता नहीं मिली .मैंने मा. राजनाथ जी से भी गुजारिश की, उन्होंने भी असमर्थता व्यक्त कर दी अंततः मुझे निराश होकर वापस रायपुर लौटना पढ़ा. आज उनका 87 वां जन्म-दिन है. श्री अटल जी को जन्म दिन की ढेर सारी शुभकामनाएं एवं बधाई. ईश्वर से प्रार्थना है कि अटल जी को दीर्घायु दें तथा स्वस्थ होकर वे देश का पुनः नेतृत्व करें.
अशोक बजाज [साभार प्रवक्ता.कॉम]
श्री अटल बिहारी वाजपेयी 16 से 31 मई, 1996 और दूसरी बार 19 मार्च, 1998 से 13 मई, 2004 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे. प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने के साथ पंडित जवाहरलाल नेहरू के बाद वे ऐसे अकेले प्रधानमंत्री रहे हैं जिन्होंने लगातार तीन जनादेशों के जरिए भारत के प्रधानमंत्री पद को सुशोभित किया. श्री वाजपेयी, श्रीमती इन्दिरा गांधी के बाद ऐसे पहले प्रधानमंत्री रहे हैं जिन्होंने निरन्तर चुनावों में विजय दिलाने के लिए अपनी पार्टी का नेतृत्व किया.
वे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन जो देश के विभिन्न क्षेत्रों की विभिन्न पार्टियों का एक चुनाव-पूर्व गठबन्धन है और जिसे तेरहवीं लोकसभा के निर्वाचित सदस्यों का पूर्ण समर्थन और सहयोग हासिल है, के नेता चुने गए. श्री वाजपेयी भाजपा संसदीय पार्टी जो बारहवीं लोकसभा की तरह तेरहवीं लोकसभा में भी अकेली सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है, के निर्वाचित नेता रहे हैं.
उन्होंने विक्टोरिया (अब लक्ष्मीबाई) कॉलेज, ग्वालियर और डी.ए.वी. कॉलेज, कानपुर (उत्तरप्रदेश) से शिक्षा प्राप्त की. श्री वाजपेयी ने एम.ए. (राजनीति विज्ञान) की डिग्री हासिल की है तथा उन्होंने अनेक साहित्यिक, कलात्मक और वैज्ञानिक उपलब्धियां अर्जित की हैं. उन्होंने राष्ट्रधर्म (हिन्दी मासिक), पांचजन्य (हिन्दी साप्ताहिक) और स्वदेश तथा वीर अर्जुन दैनिक समाचार-पत्रों का संपादन किया. उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं–”मेरी संसदीय यात्रा”(चार भागों में); ”मेरी इक्यावन कविताएं”; ”संकल्प काल”; ”शक्ति से शांति” और ”संसद में चार दशक” (तीन भागों में भाषण), 1957-95; ”लोकसभा में अटलजी” (भाषणों का एक संग्रह); ”मृत्यु या हत्या”; ”अमर बलिदान”; ”कैदी कविराज की कुंडलियां”(आपातकाल के दौरान जेल में लिखीं कविताओं का एक संग्रह); ”भारत की विदेश नीति के नये आयाम”(वर्ष 1977 से 1979 के दौरान विदेश मंत्री के रूप में दिए गए भाषणों का एक संग्रह); ”जनसंघ और मुसलमान”; ”संसद में तीन दशक”(हिन्दी) (संसद में दिए गए भाषण 1957-1992-तीन भाग); और ”अमर आग है” (कविताओं का संग्रह),1994.
श्री वाजपेयी ने विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में हिस्सा लिया है. वे सन् 1961 से राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य रहे हैं. वे कुछ अन्य संगठनों से भी सम्बध्द रहे हैं जैसे-(1) अध्यक्ष, ऑल इंडिया स्टेशन मास्टर्स एंड असिस्टेंट मास्टर्स एसोसिएशन (1965-70);(2) पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्मारक समिति (1968-84); (3) दीनदयाल धाम, फराह, मथुरा (उत्तर प्रदेश); और (4) जन्मभूमि स्मारक समिति, (1969 से) .
पूर्ववर्ती जनसंघ के संस्थापक-सदस्य (1951), अध्यक्ष, भारतीय जनसंघ (1968-73), जनसंघ संसदीय दल के नेता (1955-77) तथा जनता पार्टी के संस्थापक-सदस्य (1977-80), श्री वाजपेयी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष (1980-86) और भाजपा संसदीय दल के नेता (1980-1984,1986 तथा 1993-1996) रहे. वे ग्यारहवीं लोकसभा के पूरे कार्यकाल तक प्रतिपक्ष के नेता रहे. इससे पहले वे 24 मार्च 1977 से लेकर 28 जुलाई, 1979 तक मोरारजी देसाई सरकार में भारत के विदेश मंत्री रहे.
पंडित जवाहरलाल नेहरु की शैली के राजनेता के रुप में देश और विदेश में अत्यंत सम्मानित श्री वाजपेयी के प्रधानमंत्री के रुप में 1998-99 के कार्यकाल को ”साहस और दृढ़-विश्वास का एक वर्ष” के रुप में बताया गया है. इसी अवधि के दौरान भारत ने मई 1998 में पोखरण में कई सफल परमाणु परीक्षण करके चुनिन्दा राष्ट्रों के समूह में स्थान हासिल किया. फरवरी 1999 में पाकिस्तान की बस यात्रा का उपमहाद्वीप की बाकी समस्याओं के समाधान हेतु बातचीत के एक नये युग की शुरुआत करने के लिए व्यापक स्वागत हुआ। भारत की निष्ठा और ईमानदारी ने विश्व समुदाय पर गहरा प्रभाव डाला. बाद में जब मित्रता के इस प्रयास को कारगिल में विश्वासघात में बदल दिया गया, तो भारत भूमि से दुश्मनों को वापिस खदेड़ने में स्थिति को सफलतापूर्वक सम्भालने के लिए भी श्री वाजपेयी की सराहना हुई . श्री वाजपेयी के 1998-99 के कार्यकाल के दौरान ही वैश्विक मन्दी के बाबजूद भारत ने 5.8 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृध्दि दर हासिल की जो पिछले वर्ष से अधिक थी. इसी अवधि के दौरान उच्च कृषि उत्पादन और विदेशी मुद्रा भण्डार जनता की जरुरतों के अनुकूल अग्रगामी अर्थव्यवस्था की सूचक थी . ”हमें तेजी से विकास करना होगा। हमारे पास और कोई दूसरा विकल्प नहीं है ” वाजपेयीजी का नारा रहा है जिसमें विशेषकर गरीब ग्रामीण लोगों को आर्थिक रुप से मजबूत बनाने पर बल दिया गया है . ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने, सुदृढ़ आधारभूत-ढांचा तैयार करने और मानव विकास कार्यक्रमों को पुनर्जीवित करने हेतु उनकी सरकार द्वारा लिए गये साहसिक निर्णय ने भारत को 21वीं सदी में एक आर्थिक शक्ति बनाने के लिए अगली शताब्दी की चुनौतियों से निपटने हेतु एक मजबूत और आत्म-निर्भर राष्ट्र बनाने के प्रति उनकी सरकार की प्रतिबध्दता को प्रदर्शित किया . 52वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लालकिले की प्राचीर से बोलते हुए उन्होंने कहा था, ”मेरे पास भारत का एक सपना है: एक ऐसा भारत जो भूखमरी और भय से मुक्त हो, एक ऐसा भारत जो निरक्षरता और अभाव से मुक्त हो. ”
श्री वाजपेयी ने संसद की कई महत्वपूर्ण समितियों में कार्य किया है. वे सरकारी आश्वासन समिति के अध्यक्ष (1966-67); लोक लेखा समिति के अध्यक्ष (1967-70); सामान्य प्रयोजन समिति के सदस्य (1986); सदन समिति के सदस्य और कार्य-संचालन परामर्शदायी समिति, राज्य सभा के सदस्य (1988-90); याचिका समिति, राज्य सभा के अध्यक्ष (1990-91); लोक लेखा समिति, लोक सभा के अध्यक्ष (1991-93); विदेश मामलों की स्थायी समिति के अध्यक्ष (1993-96) रहे.
श्री वाजपेयी ने स्वतंत्रता संघर्ष में हिस्सा लिया और वे 1942 में जेल गये . उन्हें 1975-77 में आपातकाल के दौरान बन्दी बनाया गया था .
व्यापक यात्रा कर चुके श्री वाजपेयी अंतर्राष्ट्रीय मामलों, अनुसूचित जातियों के उत्थान, महिलाओं और बच्चों के कल्याण में गहरी रुचि लेते रहे हैं . उनकी कुछ विदेश यात्राओं में ये शामिल हैं- संसदीय सद्भावना मिशन के सदस्य के रुप में पूर्वी अफ्रीका की यात्रा, 1965; आस्ट्रेलिया के लिए संसदीय प्रतिनिधिमंडल 1967; यूरोपियन पार्लियामेंट, 1983; कनाडा 1987; कनाडा में हुई राष्ट्रमंडल संसदीय संघ की बैठकों में भाग लेने हेतु भारतीय प्रतिनिधिमंडल 1966 और 1984; जाम्बिया, 1980; इस्ले आफ मैन, 1984; अंतर-संसदीय संघ सम्मेलन, जापान में भाग लेने हेतु भारतीय प्रतिनिधिमंडल, 1974; श्रीलंका, 1975; स्वीट्जरलैंड 1984; संयुक्त राष्ट्र महासभा के लिए भारतीय प्रतिनिधिमंडल, 1988, 1990, 1991, 1992, 1993 और 1994; मानवाधिकार आयोग सम्मेलन, जेनेवा में भाग लेने हेतु भारतीय प्रतिनिधिमंडल के नेता, 1993.
श्री वाजपेयी को उनकी राष्ट्र की उत्कृष्ट सेवाओं के लिए वर्ष 1992 में पद्म विभूषण दिया गया. उन्हें 1994 में लोकमान्य तिलक पुरस्कार तथा सर्वोत्तम सांसद के लिए भारत रत्न ,पंडित गोविन्द बल्लभ पंत पुरस्कार भी प्रदान किया गया. इससे पहले, वर्ष 1993 में उन्हें कानपुर विश्वविद्यालय द्वारा फिलॉस्फी की मानद डाक्टरेट उपाधि प्रदान की गई.
श्री वाजपेयी काव्य के प्रति लगाव और वाक्पटुता के लिए जाने जाते हैं और उनका व्यापक सम्मान किया जाता है. श्री वाजपेयीजी पुस्तकें पढ़ने के बहुत शौकीन हैं। वे भारतीय संगीत और नृत्य में भी काफी रुचि लेते हैं.
वे निम्नलिखित पदों पर आसीन रहे :—
•1951 – भारतीय जनसंघ के संस्थापक-सदस्य (B.J.S)
•1957 – दूसरी लोकसभा के लिए निर्वाचित
•1957-77 – भारतीय जनसंघ संसदीय दल के नेता
•1962 – राज्यसभा के सदस्य
•1966-67 – सरकारी आश्वासन समिति के अध्यक्ष
•1967 – चौथी लोकसभा के लिए पुन: निर्वाचित (दूसरी बार)
•1967-70 – लोक लेखा समिति के अध्यक्ष
•1968-73 – भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष
•1971 – पांचवीं लोकसभा के लिए पुन: निर्वाचित (तीसरी बार)
•1977 – छठी लोकसभा के लिए पुन: निर्वाचित (चौथी बार)
•1977-79 – केन्द्रीय विदेश मंत्री
•1977-80 – जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य
•1980 – सातवीं लोकसभा के लिए पुन: निर्वाचित (पांचवीं बार)
•1980-86 – भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष
•1980-84, 1986 और 1993-96 – भाजपा संसदीय दल के नेता
•1986 – राज्यसभा के सदस्य; सामान्य प्रयोजन समिति के सदस्य
•1988-90 – आवास समिति के सदस्य; कार्य-संचालन सलाहकार समिति के सदस्य
•1990-91 – याचिका समिति के अध्यक्ष
•1991 – दसवीं लोकसभा के लिए पुन: निर्वाचित (छठी बार)
•1991-93 – लोकलेखा समिति के अध्यक्ष
•1993-96 – विदेश मामलों सम्बन्धी समिति के अध्यक्ष; लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता
•1996 – ग्यारहवीं लोकसभा के लिए पुन: निर्वाचित (सातवीं बार)
•16 मई 1996 – 31 मई 1996 तक – भारत के प्रधानमंत्री; विदेश मंत्री और इन मंत्रालयों/विभागों के प्रभारी .मंत्री-रसायन तथा उर्वरक; नागरिक आपूर्ति, उपभोक्ता मामले और .सार्वजनिक वितरण; कोयला; वाणिज्य; संचार; पर्यावरण और वन;.खाद्य प्रसंस्करण उद्योग; मानव संसाधन विकास; श्रम; खान; .गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोत; लोक शिकायत एवं पेंशन; पेट्रोलियम और .प्राकृतिक गैस; योजना तथा कार्यक्रम कार्यान्वयन; विद्युत; रेलवे,ग्रामीण क्षेत्र और रोजगार; विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी; इस्पात; भूतल परिवहन; कपड़ा; जल संसाधन; परमाणु ऊर्जा; इलेक्ट्रॉनिक्स; जम्मू व कश्मीर मामले; समुन्द्री विकास; अंतरिक्ष और किसी अन्य केबिनेट मंत्री को आबंटित न किए गए अन्य विषय।
•1996-97 – प्रतिपक्ष के नेता, लोकसभा
•1997-98 – अध्यक्ष, विदेश मामलों सम्बन्धी समिति
•1998 – बारहवीं लोकसभा के लिए पुन: निर्वाचित (आठवीं बार)
•1998-99 – भारत के प्रधानमंत्री; विदेश मंत्री; किसी मंत्री को विशिष्ट रूप से आबंटित न किए गए मंत्रालयों/विभागों का भी प्रभार
•1999 – तेरहवीं लोकसभा के लिए पुन: निर्वाचित (नौवीं बार)
•13 अक्तूबर 1999 से 13 मई 2004 तक- भारत के प्रधानमंत्री और किसी मंत्री को विशिष्ट रूप से .आबंटित न किए गए मंत्रालयों/विभागों का भी प्रभार
•2004 – चौदहवीं लोकसभा के लिए पुन: निर्वाचित (दसवीं बार)
इन दिनों वे काफी अस्वस्थ है,19-20 दिसंबर 2010 को मै दिल्ली में था, उनसे मिलने के लिए मैंने काफी हाथ पैर मारा लेकिन मुझे सफलता नहीं मिली .मैंने मा. राजनाथ जी से भी गुजारिश की, उन्होंने भी असमर्थता व्यक्त कर दी अंततः मुझे निराश होकर वापस रायपुर लौटना पढ़ा. आज उनका 87 वां जन्म-दिन है. श्री अटल जी को जन्म दिन की ढेर सारी शुभकामनाएं एवं बधाई. ईश्वर से प्रार्थना है कि अटल जी को दीर्घायु दें तथा स्वस्थ होकर वे देश का पुनः नेतृत्व करें.
अशोक बजाज [साभार प्रवक्ता.कॉम]
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