नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

गुरुवार, 16 मई 2013

बेनाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीँ जाता


बेनाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीँ जाता
जो बीत गया है वो गुज़र क्यूँ नहीं जाता

सब कुछ तो है क्या ढूँढती रहती है निगाहेँ
क्या बात है मैं वक्त पे घर क्यूँ नहीं जाता

वो एक ही चेहरा तो नहीँ सारे जहाँ में
जो दूर है वो दिल से उतर क्यूँ नहीं जाता

मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा
जाते है जिधर सब मैं उधर क्यूँ नहीं जाता

वो नाम जो बरसों से ना चेहरा ना बदन है
वो ख्वाब नगर है तो बिखर क्यूँ नहीं जाता
                                                           निदा फाज़ली 

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