नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

सोमवार, 26 सितंबर 2016

गुंजाइश



थक तो बहुत जाता हूँ
इस 12 घंटे की
ईमानदारी कि नौकरी में मैं
मगर यह सोचकर
तसल्ली भी मिलती है मुझे
कि अब अच्छी और गहरी
नींद तो आएगी मुझको
जो लाखों बेईमानों की
किस्मत में नहीं है
कभी-कभी
अपनी ईमानदारी पर
पछतावा भी होता है मुझे
कि देखो तो जरा
कितने आगे निकल गए हैं
मेरे ही साथ चलने वाले
मगर तसल्ली भी होती है
जब कुछ दूर चलने पर
मिलते हैं वही लोग
थके-हारे से जीवन के
पथरीले पहाड़ों पर
यही सोचते हुए से
कि रास्ते में छोड़ आये हैं
जो जीवन के सुनहरे पल
कि अब वापस लौटने की
नहीं बची है गुंजाईश
रत्ती भर भी!
          (कृष्ण धर शर्मा, 9.2016)

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