नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शनिवार, 27 अप्रैल 2019

ये मन नम है- पुष्पेन्द्र फाल्गुन

"ईश्वर के होने, नहीं होने का जितना झगड़ा इस धरती पर होता आया है, उतना किसी और चीज के लिए नहीं हुआ। प्रेम के लिए भी नहीं। जबकि, जो चीज इंसान को सौ में से निन्यानवे दफा सुकून देती है, वह प्रेम ही है। पर लोग ईश्वर के अस्तित्व को लेकर न सिर्फ लड़ रहे हैं, बल्कि एक-दूसरे के अस्तित्व के लिए भी संकट बन गए हैं। इंसान ईश्वर के बिना रह सकता है, प्रेम के बिना नहीं। ईश्वर को मानने वाले हों या कि नकारने वाले सभी को प्रेम चाहिए। (ये मन नम है- पुष्पेन्द्र फाल्गुन)



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गुरुवार, 18 अप्रैल 2019

भटक जाते हैं वो लोग

 

एक ही चौखट पर सर झुके तो सुकून मिलता है

भटक जाते हैं वो लोग जिनके हजारों खुदा होते हैं

                       कृष्णधर शर्मा 16.4.19

बुधवार, 10 अप्रैल 2019

रांगेय राघव संकलित कहानियां-वीरेश कुमार

 "सविता देखने में जितनी सुंदर थी, उतनी की चतुर भी थी। सबसे बड़ी बात उसमें यह थी कि वह कॉलेज के डिबेटों में खूब हिस्सा लिया करती थी। जब वह बोलना शुरू करती, तो कोई कहता- इसका बाप भी ऐसी बातें नहीं सोच सकता! जरूर कोई उस्ताद है। इसके पीछे, जो प्रेम के कारण अपने आप को छिपा कर इसे आगे बढ़ा रहा है; लेकिन इन बातों से होता जाता कुछ नहीं। अगर मान लिया जाए कि वह रट कर हो आती थी, तो रटने की भी एक हद हुआ करती है। आज तक हमने नहीं देखा कि 'चंद्रकांता संतति' के चौबीसों हिस्से किसी की जबान पर रखे हों। वह बोलने में एक भी भूल नहीं करती। 

'उसके ख्याल एकदम आजाद थे। विधवा विवाह, तलाक, सहशिक्षा, स्त्री का नौकरी करना, गोया जिंदगी के हर हर पहलू में नारी की जो बात है, वह सब सविता की ही थी। हर बात पर उसके अपने अलग विचार थे। 

नए विचारों की वह लड़की शाम को जब लड़कों के साथ घूमने निकलती, पार्टियों में जाती, कविता लिखती। कविता का मजाक शायद आप लोगों को मालूम नहीं। कोई आपकी तरफ आंखें उठाकर देखता तक नहीं तो बस, कविता लिखिए!" (रांगेय राघव संकलित कहानियां-वीरेश कुमार)



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शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019

सितारों की रातें- शोभा डे

 "आशा रानी का स्क्रीन टेस्ट उस रात साढ़े आठ बजे जाकर हुआ था। उन्हें न कुछ खाने को मिला था, न पीने को और जब उसने टॉयलेट के बारे में पूछा था, तो किसी ने स्टूडियो के एक गंदे कोने की ओर इशारा करते हुए कहा था, 

 "वहाँ चली जाओ। नखरे मत करो।" किशनभाई ने उस गंधाते कोने तक जाने वाले तांग रास्ते को बड़ी शान से तब तक रोके रखा था, जब तक आशा रानी ने पेशाब नहीं कर लिया था। उसने देखा था कि आशा रानी का दमखम टूटने लगा है। आशा रानी के लिए उसने एक पैकिट नरम-नरम बिस्कुटों का इंतजाम करा दिया था, जिन्हें उसने जल्दी-जल्दी खा लिया था। फिर उसने डरते-डरते अम्मा से "कॉफी" के लिए कहा था। अम्मा ने धीमे-से लेकिन बिगड़ते हुए कहा था, " 

यहाँ कोई "कॉफी" नहीं मिलेगी। चुप रहो और इंतजार करो--बाद में खाने-पीने के लिए बहुत समय मिलेगा। इस समय बस अपने टेस्ट पर ध्यान लगाओ।"  आशा रानी ने दुखी मन से हाँ कर दी थी और घी में भीगे भात के ऊपर गरमागरम साँभर से अपना ध्यान बँटाने की कोशिश करने लगी थी।" (सितारों की रातें- शोभा डे)




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बुधवार, 3 अप्रैल 2019

मदरसा-मंजूर एहतेशाम

 "दुनिया में अव्वल तो आदर्श-नामी तोता पालता कौन है, या अगर पालता है, तो उसकी परवरिश गिद्ध की तरह करता है-दूसरों को नोचने-ख़सूटने के वास्ते इस्तेमाल करने को! 

जिन्दा चीज़ें अपनी उम्र गुज़ार सकने के लिए आब, हवा और गिजा की मोहताज होती हैं, वह तोते हों, गिद्ध या इनसान। कभी कोई बेईमानी करने से पहले दिल में यह नीयत थोड़ी करता है कि मैं फलाँ-फलाँ काम बेईमानी करने जा रहा हूँ।  बेईमानी भी हो जाती है, ईमानदारी की तरह! जो हो जाए, उसके पक्ष में दलीलें पेश करना कौन सा मुश्किल काम है! लगता है, हमारे जमाने में ऐसा हो गया, लेकिन शायद दुनिया बनने के साथ ही ऐसा रहा होगा।

 सवाल-जवाब का जोखिम भी, किसी के साथ, इस तकल्लुफ़ को बरतते हुए ही उठाया जा सकता है कि कहीं हम किसी लक्ष्मण-रेखा का उल्लंघन तो नहीं कर रहे। फिर भी, दुनियादारी के सारे तक़ाज़े ज़ेहन में रखने की कोशिश के बावजूद, कभी-कभी ऐसा हो ही जाता है! (जैसा करने की मन में बेहद इच्छा के बावजूद, हम नहीं करना चाहते।)" (मदरसा-मंजूर एहतेशाम)




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